Bhangarh Fort Story in Hindi

भानगढ़ किले का इतिहास

भूत-प्रेत की कहानियां पढ़ने और सुनने में तो बहुत रोमांचक लगती है। लेकिन ज़रा सोचिए ऐसी घटनाएं वास्तव में आपके साथ घटित होने लगे तो, क्या आप उस घटना को रोमांचित कहेंगे या डर के कारण थरथराने लगेंगे ?

किसी परलौकिक शक्ति या प्रेत-आत्मा के आस-पास होने का एहसास भी हमारें शरीर में एक अजीब डर व सिहरन पैदा कर देता है। तो ऐसे में ज़ाहिर सी बात है कि आपका सामना ऐसी किसी ताकत से हो जाएगा तो आपका रोमांच वही दम तोड़ देगा।

वैसे तो कहने के लिए बहुत सी जगहें है, जहां यह माना जाता है कि आत्माओं का वास है। कोई वीरान और कोई अकेला खाली घर हो या फिर एक लम्बे समय से खाली पड़ी ईमारत।

इसके अलावा वह स्थान, जहां किसी दुर्घटना की वजह से किसी की मृत्यु हुई हो। उस स्थान को भी हम जाने योग्य नही मानते है। क्योंकि जिन लोगों की दुर्घटना में मृत्यु होती है, उनकी आत्माओं को मुक्ति प्राप्त नही होती।

इसलिए आत्मायें वहाँ भटकती रहती है। कहने में तो बहुत सी जगहें हॉन्टेड या भूतघर कहा जा सकता है। जहां कहा जा सकता है कि उस स्थान में कुछ न कुछ गड़बड़ तो जरूर है। ऐसे ही स्थानों में से एक सबसे डरावना व भूतिया स्थान है- भारत के राजस्थान राज्य में स्थित भानगढ़ का किला।

भानगढ़ किला

दोस्तों, भानगढ़ का किला राजस्थान राज्य के अलवर ज़िले में स्थित है। भानगढ़ का किला जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग के मध्य में स्थित है। जो कि सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान से जुड़ा हुआ है।

भानगढ़ का किला भारत के सबसे भयानक व डरावनें किलों में से एक है। इस किले में रात के समय जाने पर सख्त पाबंदी है। यह किला रहस्यमयी घटनाओं और इसके प्राचीन इतिहास के लिए जाना जाता है।

भानगढ़ किले का इतिहास

भानगढ़ किले का निर्माण आमेर के महाराजा भगवंत दास ने सन 1573 ईस्वी में करवाया था। उनके सबसे छोटे पुत्र मान सिंह थे। मान सिंह मुग़ल सम्राट अकबर के नवरत्नों में शामिल थे। उनके भाई माधो सिंह ने सन 1613 ईस्वी में भानगढ़ किले को अपना निवास स्थान बना लिया तथा यहाँ जीवनयापन करने लग गये।

माधो सिंह के कुल 3 पुत्र थे। जिनका नाम सुजान सिंह, छत्र सिंह व तेज सिंह था। माधो सिंह की मृत्यु के पश्चात इस किले पर उनके पुत्र छत्र सिंह ने शासन किया। छत्र सिंह का भी एक पुत्र था।

जिसका नाम अजब सिंह था। जब सत्ता अजब सिंह के हाथ में आयी तो, उन्होंने भानगढ़ को अपना किला नही बनाया बल्कि भानगढ़ के निकट ही उसने अपना सम्राज्य अजबगढ़ बसाया और वहीं रहने लगा। अजब सिंह के कुल 3 बेटे थे। जिनका नाम काबिल सिंह, जसवंत सिंह व हरि सिंह था।

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काबिल सिंह और जसवंत सिंह ने तो अजबगढ़ पर ही शासन किया किन्तु हरि सिंह ने सन 1722 ईस्वी में भानगढ़ किले को अपना सम्राज्य बनाया। हरि सिंह के 2 पुत्र थे।

उन दोनों ने मुग़ल सम्राट औरंगजेब के डर से मुस्लिम धर्म अपना लिया था। मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद जन दोनों का नाम मोहम्मद कुलीज व मोहम्मद दहलीज़ पड़ा। मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने इन दोनों को भानगढ़ का शासक बनाया था।

औरंगजेब के शासनकाल के बाद मुग़ल शासन कमज़ोर हो गया। उस समय सवाई जयसिंह ने मोहम्मद कुलीज और मोहम्मद दहलीज़ को हराकर भानगढ़ पर विजय प्राप्त की।

भानगढ़ का किला एक ऐसा स्थान है, जिसको पुरातत्व वैज्ञानिकों ने भी सामान्य नही माना है। इसीलिए राज्य सरकार द्वारा भानगढ़ किले के चारों तरफ बाहर चेतावनी के तौर पर एक बोर्ड लगा हुआ है,

जिसमें साफ-साफ लिखा है कि इस किले में सूर्योदय से पहले तथा सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध है। आखिर भानगढ़ के किले में ऐसा क्या है? जिस कारण आमजन को रात के समय वहाँ जाने से रोका जाता है। अगर कुछ है तो फिर उसके पीछे क्या कारण है ?

भानगढ़ किले की बर्बादी की कहानी

हालांकि कोई भी प्रमाणित तौर पर वहाँ घटने वाली घटनाओं का कारण नही बता पाया है। लेकिन स्थानीय लोगों के बीच इस किले से जुड़ी कुछ कहानियां प्रचलित है। ये कहानियां साबित करती है कि किले में कुछ न कुछ तो जरूर है।

भानगढ़ किले की पहली कहानी

Bhangarh Fort Story के अनुसार, लोगों का मानना है कि बहुत समय पहले भानगढ़ किले में रत्नावती नामक राजकुमारी रहती थी। वह राजकुमारी बहुत ही सुंदर थी। इस कारण उस राजकुमारी पर कला-जादू करने वाले एक तांत्रिक की कुदृष्टि थी।

तांत्रिक ने अपने काले-जादू से राजकुमारी को अपने वश में करके उसका शारिरिक शोषण किया। लेकिन एक दुर्घटना के चलते उस तांत्रिक की मृत्यु हो गयी। लेकिन उस तांत्रिक की आत्मा आज भी वहाँ पर किले में भटकती रहती है।

मृत्यु से पहले तांत्रिक ने भानगढ़ किले पर श्राप दिया था कि यह किला व इस किले में रहने वाले सभी मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। इसलिए कुछ समय बाद भानगढ़ किले में धन वाले लोगों की मृत्यु हो गई और भानगढ़ किला नष्ट होकर खण्डहर में बदल गया।

भानगढ़ किले से जुड़ी एक अन्य प्रचलित कहानी के अनुसार सिन्धु सेवड़ा महल के पास स्थित पहाड़ पर तांत्रिक क्रियाएं करता था। वह राजकुमारी रत्नावती के रूपमयी सौंदर्य पर मोहित था।

एक दिन भानगढ़ के बाज़ार में उसने देखा कि राजकुमारी की सेविका उसके लिए बालों का तेल लेने आयी है। उसके बाद उस तांत्रिक ने उस तेल पड़ काला-जादू कर दिया कि वह तेल जो भी उपयोग में लेगा, वह व्यक्ति स्वयं ही उस तांत्रिक के पास आ जाएगा।

Bhangarh Fort Story

कहा जाता है कि राजकुमारी ने जब तेल को देखा तो वह समझ गयी कि यह तेल उस तांत्रिक द्वारा अभिमन्त्रित है। कहा जाता है कि राजकुमारी भी बहुत सिद्ध स्त्री थी। इसलिए उसने उस तेल की पहचान कर ली और दासी से वह तेल फेंक देने को कहा। राजकुमारी के आदेशानुसार दासी ने उस तेल को एक चट्टान पर गिरा दिया।

इसलिए कला-जादू के कारण वह चट्टान तेल के गिरते ही स्वयं उड़कर सिन्धुसेवड़ा की ओर रवाना हो गई, जहाँ तांत्रिक रहता था। उस तांत्रिक ने उड़कर आती चट्टान को देखकर अनुमान लगाया कि राजकुमारी उस पर बैठकर उसके पास आ रही है।

इस कारण तांत्रिक ने उस तेल को अपनी चट्टान पर उतारना चाहा। लेकिन जब चट्टान करीब आई तो उसे पता चला कि चट्टान पर कोई राजकुमारी नही है।

इसलिए उसने चट्टान के अपने ऊपर चढ़ने से पहले ही क्रोध में में भानगढ़ किले को श्राप दे दिया। उसके बाद चट्टान के नीचे दबकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। कहा जाता है कि सिद्ध राजकुमारी ने तांत्रिक के श्राप को समझ लिया और उसने किले खाली करवा दिया। इसलिए भानगढ़ किला खाली होने के बाद उजड़ गया और राजकुमारी भी श्राप की भेंट चढ़ गयी।

भानगढ़ किले की दूसरी कहानी

Bhangarh Fort Story के अनुसार, जिस स्थान पर भानगढ़ किले का निर्माण हुआ था। असल में वह स्थान योगी बालूनाथ की तपोभूमि थी। योगी बालूनाथ ने महाराजा भगवंतदास को भानगढ़ किले के निर्माण की अनुमति तो दे दी।

किन्तु योगी बालूनाथ ने एक शर्त रखी कि इस किले की परछाई कभी भी उनके तपोस्थल पर नही पड़नी चाहिए और अगर इस किले की परछाई तपोस्थल पर पड़ी तो, यह किला ध्वस्त हो जाएगा।

महाराजा भगवंतदास ने उनकी शर्त स्वीकार कर ली। उन्होंने योगी बालूनाथ के अनुसार ही भानगढ़ किले का निर्माण करवाया। किन्तु कुछ समय बाद महाराजा भगवंत दास की मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु के पश्चात उनके वंशज माधो सिंह ने भानगढ़ किले का शासन संभाला। कुछ समय बाद उन्होंने भानगढ़ किले की ऊपरी मंजिलों का निर्माण भी करवा दिया। इस कारण योगी बालूनाथ की तपोभूमि पर भानगढ़ किले की परछाई पड़ गयी। परछाई के पड़ते ही योगी बालूनाथ की बात सच साबित हो गयी। भनागढ़ का किला पुरी तरह से नष्ट हो गया।

तो दोस्तों, यह थी भनागढ़ किले से जुड़ी कहानियां। इन कहानियों में कितनी सच्चाई है? इसके बारे में इस बात से ही जाना जा सकता है कि चंद श्रुतियों में भानगढ़ किले की राजकुमारी रत्नावती को कईं लोग रानी तो कईं लोग राजकुमारी बताते है। रानी रत्नावती का जिक्र तो हर कोई करता है।

लेकिन वह किस राजा की रानी थी? उसका नगर कोनसा था? उसका शासनकाल कोनसा था? इन सवालों का जवाब किसी के पास नही है। यहाँ के लोग इस नगर व किले को करीब 400 वर्ष पूर्व उजड़ा बताते है। लेकिन किले में मील विभिन्न राजाओं के शिलालेखों की समय-तिथि देखने के बाद इस नगर की उजड़ने की तिथि कम हो जाती है।

भानगढ़ किले की बनावट व संरचना

दोस्तों, भानगढ़ का किला तीन दिशाओं से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इस किले के आगे वाले भाग में एक बड़ी दीवार है। यह दीवार दोनों तरफ से पहाड़ियों तक फैली हुई है। इस किले के मुख्य भाग में हनुमान जी का मंदिर भी स्थित है।

यहाँ से प्रवेश करने पर बाज़ार जा सकते है। बाज़ार के खत्म होने के बाद त्रिपोलिया गेट आता है। इस गेट से राजमहल के परिसर में प्रवेश किया जा सकता है। इस किले में प्रवेश के लिए 4 प्रवेश द्वार है

  • दिल्ली द्वार
  • अजमेरी द्वार
  • फुलवारी द्वार
  • लाहौरी द्वार

भानगढ़ किले में बहुत से मंदिर भी बने हुए है। जिनमें से कुछ नीचे है

  • नवीन मंदिर
  • गणेश मंदिर
  • गोपीनाथ मंदिर
  • केशवराय मंदिर
  • सोमेश्वर मंदिर
  • मंगलादेवी मंदिर
  • शिव मंदिर

गोपीनाथ मंदिर 14 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है। इस मंदिर को और अधिक सुंदर बनाने के लिए इसकी नक्काशी में पीले पत्थरों का उपयोग किया गया था।

इस मंदिर के परिसर में “पुरोहित की हवेली” नामक एक घर है, जहां इस मंदिर के पुजारी निवास करते थे। गोपीनाथ मंदिर के बाद नर्तक महल और जोहरी बाज़ार दिखाई देते है। इन सभी के पश्चात भानगढ़ का मुख्य किला दिखाई देता है। इस किले के पास ही हनुमान मंदिर और शिव मंदिर है।

Bhangarh Fort Story

भानगढ़ के कीले में पुजारी रोज पूजा करते है तथा सोमवार को वे यहाँ पूरे दिन रूकते है। यहाँ पर मुसलमानों के मक़बरें भी स्थित है। जो कि राजा हरि सिंह के पुत्रों के है। भानगढ़ किले में अनेक कमरें है, जो काफ़ी अंधेरे में स्थित है।

रात के समय में बहुत सी आवाजें यहां सुनाई देती है। इस किले के पीछे की तरफ एक चोट से दरवाजा है। भानगढ़ का किला पूरी तरह से क्षतिग्रस्त है। यहाँ से सम्पूर्ण शहर को देखा जा सकता है।

भारत का पुरातत्व सर्वेक्षण दल हमेशा भानगढ़ किले के पास मौजूद रहता है। यहां रहने वाले लोगों ने आत्माओं को घूमते हुए महसूस किया है। कहा जाता है कि यह आत्माएं राजकुमारी और जादूगर की है।

भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण दल ने यहां पर शोध किया। शोध में उन्हें बहुत सी अजीब चीजें दिखाई दी। जिस कारण भारतीय सरकार ने रात के समय इस किले में प्रवेश निषेध कर दिया है।

बात जो भी हो, लेकिन आज के समय में भी भानगढ़ किले को आज भी सबसे डरावना स्थान माना जाता है। या फ़िर भारत का सबसे प्राचीन किला, जिसमें भूतों के होने की आशंका है या फिर जहां भूत निवास करते है। वह भानगढ़ का किला ही है। तो दोस्तों यह था भानगढ़ किले का इतिहास व इसकी कहानी।

भानगढ़ जाते समय सलाह

अगर आप भानगढ़ जाना चाहते है, तो आप अपने वाहन के द्वारा जा सकते है। वहाँ जाने के लिए जुलाई का महीना सबसे अच्छा समय बढ़िया है। इस समय यहाँ पर चारों ओर हरियाली फैली होती है। सुबह के समय इस किले में आसानी से घूम सकते है।

भानगढ़ किले का प्रवेश शुल्क

भानगढ़ किले में प्रवेश के लिए कोई भी शुल्क नही है। आप वहाँ मुफ्त में घूम व जा सकते है।

भानगढ़ किले में प्रवेश समय

6:00 A.M. – 6:00 P.M.

भानगढ़ किले में प्रवेश समय अवधि

3 घण्टे

भानगढ़ किले का पता

गोला का बास, राजगढ़ तहसील, अलवर, भानगढ़, राजस्थान।

आशा करता हूँ कि Bhangarh Fort Story के बारे में दी गयी जानकारी आप सभी को पसंद आयी होगी।अंत में दोस्तों में सिर्फ यही कहना चाहता हूँ कि भानगढ़ किले जैसा डरावना व भूतिया किला शायद ही दूसरा कोई और होगा। आशा करता हूँ की Bhangarh Fort Story के बारे में दी गयी जानकारी आपको जरूर पसंद आयी होगी। आपका बहुमूल्य समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

अगर आपके मन में Bhangarh Fort Story से सम्बंधित किसी भी प्रकार का प्रश्न है तो आप हमसें कमेंट के माध्यम से पूछ सकते है। हम आपके प्रश्न का जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे। आगे भी हम आपके लिए ऐसे ही उपयोगी आर्टिकल लाते रहेंगे।

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धन्यवाद…

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