गणतंत्र दिवस पर कविता 2021 – 26 जनवरी पर कवितायें – Poem on Republic day in Hindi – Gantantra Diwas Par Kavita
गणतंत्र दिवस यानि की रिपब्लिक डे इस दिन हमारे देश का संविधान लागू हुआ था और पुरे देश में इसे लागू किया गया था हमारे देश का संविधान 26 नवंबर 1949 को बन कर लागू उसके बाद 26 जनवरी 1950 में इसे पुरे राष्ट्र में लागू कर दिया गया |
इस दिन देश भर में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते और खासतौर से विद्यालयों तथा सरकारी कार्यलयों में इसे काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है तथा इसके उपलक्ष्य में भाषण, निबंध लेखन और कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
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– 8 बेहतरीन गणतंत्र दिवस 2021 पर कविताये –
(1)
गीत विजय के
प्राची से झाँक रही ऊषा,
कुंकुम-केशर का थाल लिये।
हैं सजी खड़ी विटपावलियाँ,
सुरभित सुमनों की माल लिये॥
गंगा-यमुना की लहरों में,
है स्वागत का संगीत नया।
गूँजा विहगों के कण्ठों में,
है स्वतन्त्रता का गीत नया॥
प्रहरी नगराज विहँसता है,
गौरव से उन्नत भाल किये।
फहराता दिव्य तिरंगा है,
आदर्श विजय-सन्देश लिये॥
गणतन्त्र-आगमन में सबने,
मिल कर स्वागत की ठानी है।
जड़-चेतन की क्या कहें स्वयं,
कर रही प्रकृति अगवानी है॥
कितने कष्टों के बाद हमें,
यह आज़ादी का हर्ष मिला।
सदियों से पिछड़े भारत को,
अपना खोया उत्कर्ष मिला॥
धरती अपनी नभ है अपना,
अब औरों का अधिकार नहीं।
परतन्त्र बता कर अपमानित,
कर सकता अब संसार नहीं॥
क्या दिये असंख्यों ही हमने,
इसके हित हैं बलिदान नहीं।
फिर अपनी प्यारी सत्ता पर,
क्यों हो हमको अभिमान नहीं॥
पर आज़ादी पाने से ही,
बन गया हमारा काम नहीं।
निज कर्त्तव्यों को भूल अभी,
हम ले सकते विश्राम नहीं॥
प्राणों के बदले मिली जो कि,
करना है उसका त्राण हमें।
जर्जरित राष्ट्र का मिल कर फिर,
करना है नव-निर्माण हमें॥
इसलिये देश के नवयुवको!
आओ कुछ कर दिखलायें हम।
जो पंथ अभी अवशिष्ट उसी,
पर आगे पैर बढ़ायें हम॥
भुजबल के विपुल परिश्रम से,
निज देश-दीनता दूर करें।
उपजा अवनी से रत्न-राशि,
फिर रिक्त-कोष भरपूर करें॥
दें तोड़ विषमता के बन्धन,
मुखरित समता का राग रहे।
मानव-मानव में भेद नहीं,
सबका सबसे अनुराग रहे,
कोई न बड़ा-छोटा जग में,
सबको अधिकार समान मिले।
सबको मानवता के नाते,
जगतीतल में सम्मान मिले॥
विज्ञान-कला कौशल का हम,
सब मिलकर पूर्ण विकास करें।
हो दूर अविद्या-अन्धकार,
विद्या का प्रबल प्रकाश करें॥
हर घड़ी ध्यान बस रहे यही,
अधरों पर भी यह गान रहे।
जय रहे सदा भारत माँ की,
दुनिया में ऊँची शान रहे॥
– महावीर प्रसाद
(2)
धार के इधर उधर
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आज़ादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,
“जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।”
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,
कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,
ग़ैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,
किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,
बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गाँठें लग जातीं,
बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
कटीं बेड़ियाँ औ’ हथकड़ियाँ, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,
किंतु यहाँ पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पाँव बढ़ाओ,
आज़ादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,
उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।
हल्का फूल नहीं आज़ादी, वह है भारी ज़िम्मेदारी,
उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
– हरिवंशराय बच्चन
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(3)
मुझको मेरा देश पसंद है
मुझको मेरा देश पसंद है,
इसका हर संदेश पसंद है,
इसकी मिट्टी में मुझको,
आती सोंधी सी सुगंध है,
इसकी हर एक बात निराली,
इसकी हर सौगात निराली,
इसके वीरों की गाथा सुन,
आती एक नई उमंग हैं,
कितनी भाषा कितने लोग,
हर एक की एक नई है सोच,
संस्कृति सभ्यता भले ही हो भिन्न,
मिलते एकता के चिन्ह,
जो गर देश पर आ जाये आंच,
एक होकर सब आते साथ,
मेरा देश है बड़ा महान,
ये है एक गुणों की खान,
देखली हमने सारी दुनिया,
पर देखा ना भारत जैसा,
इस मिट्टी में जन्म लिया है,
इसकी हवाओं की ठंठक से,
साँसे पाती नया जन्म है,
मुझको मेरा देश पसंद हैं।
(4)
कोशिश कर हल निकलेगा,
आज नहीं तो कल निकलगा।
कोशिश कर हल निकलेगा,
आज नही तो कल निकलेगा,
अर्जुन सा लक्ष्य रख निशाना लगा,
मरुस्थल से भी फिर जल निकलेगा,
मेहनत कर पौधों को पानी दे,
बंजर में भी फिर फल निकलेगा,
ताक़त जुटा, हिम्मत को आग दे,
फौलाद का भी बल निकलेगा,
सीने में उम्मीदों को ज़िंदा रख,
समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा,
कोशिशें जारी रख कुछ कर ग़ुज़रने की,
जो कुछ थमा-थमा है चल निकलेगा,
कोशिश कर हल निकलेगा,
आज नहीं तो कल निकलगा।
(5)
लौट-लौट कर जाते अपने
गणतंत्र दिवस पर लौट-लौट कर जाते अपने
घर पक्षी खोले डैने ताज़ा उजले-सीने
से हवा काटते मुड़ते तिर्यक- भर जाते सपने-
गान उदासी के नूतन नील गगन में जीने
की कांक्षा से प्रेरित- ॠतु को भासित करने ।
भरी फ़सल दूधिया- दाने चमके आँखों में
किसान की, उतरा माह पके सब पत्ते झरने
को, फूला गेंदा, गुलाब, स्वर्णफूल वसंत में
धागे बाँधे चौखट में आम के, उल्लास नया
जीवन का- चाहे मार रहा पाला सब को
भीतर से, डूबा है सूरज जो चला गया
छोड़ अकेला, नीला वन डरा रहा है हम को।
काल अँधेरा मुँह फाड़े अब खड़ा सामने
मेरी जिजीविषा को लख वह लगा काँपने ।
– विजेन्द्र
देखो 26 जनवरी आयी
(6)
देखो 26 जनवरी है आयी, गणतंत्र की सौगात है लायी।
अधिकार दिये हैं इसने अनमोल, जीवन में बढ़ सके बिन अवरोध।
हर साल 26 जनवरी को होता है वार्षिक आयोजन,
लाला किले पर होता है जब प्रधानमंत्री का भाषन,
नयी उम्मीद और नये पैगाम से, करते है देश का अभिभादन,
अमर जवान ज्योति, इंडिया गेट पर अर्पित करते श्रद्धा सुमन,
2 मिनट के मौन धारण से होता शहीदों को शत-शत नमन।
सौगातो की सौगात है, गणतंत्र हमारा महान है,
आकार में विशाल है, हर सवाल का जवाब है,
संविधान इसका संचालक है, हम सब का वो पालक है,
लोकतंत्र जिसकी पहचान है, हम सबकी ये शान है,
गणतंत्र हमारा महान है, गणतंत्र हमारा महान है।
मोह निद्रा में सोने वालों
(7)
मोह निंद्रा में सोने वालों, अब भी वक्त है जाग जाओ,
इससे पहले कि तुम्हारी यह नींद राष्ट्र को ले डूबे,
जाति-पाती में बंटकर देश का बन्टाधार करने वालों,
अपना हित चाहते हो, तो अब भी एक हो जाओ,
भाषा के नाम पर लड़ने वालों,
हिंदी को जग का सिरमौर बनाओ,
राष्ट्र हित में कुछ तो बलिदान करो तुम,
इससे पहले कि राष्ट्र फिर गुलाम बन जाए,
आधुनिकता केवल पहनावे से नहीं होती है,
ये बात अब भी समझ जाओ तुम,
फिर कभी कहीं कोई भूखा न सोए,
कोई ऐसी क्रांति ले आओ तुम,
भारत में हर कोई साक्षर हो,
देश को ऐसे पढ़ाओ तुम||
देश का गौरव – गणतंत्रोत्सव
(8)
हम आजादी के मतवाले,
झूमे सीना ताने।
हर साल मनाते उत्सव,
गणतंत्र का महजब़ जाने।
संविधान की भाषा बोले,
रग-रग में कर्तव्य घोले।
गुलामी की बेड़ियों को,
जब रावी-तट पर तोड़ा था।
उसी अवसर पर तो,
हमनें संविधान से नाता जोड़ा था।
हर साल हम उसी अवसर पर,
गणतंत्र उत्सव मनाते हैं।।
पूरा भारत झूमता रहता है,
और हम नाचते-गाते हैं।
राससीना की पहाड़ी से,
शेर-ए-भारत बिगुल बजाता है।
अपने शहीदों को करके याद,
पुनः शक्ति पा जाता है।।