Guru Purnima Essay/ Nibandh in Hindi (Paragraph , Lines)
Essay on Guru Purnima in Hindi : दोस्तों आज हमने दोस्ती दिवस पर निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12 के विद्यार्थियों के लिए लिखा है. Get Some Essay on Gupu Purnima in Hindi for class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11 & 12 Students.
प्रस्तावना : गुरु पूर्णिमा को वेद्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है जिसे वेदव्यास के जन्मदिन पर मनाया जाता है। दोस्तों आज इस आर्टिकल से हम गुरु पूर्णिमा की क्या महत्व है, इसे क्यों मनाया जाता है, और मनाने के लिए कारण जानेंगे।
जैसे नाम से स्पष्ट होता है ,ये गुरु पूर्णिमा पर्व गुरु के लिए समर्पित है। गुरु पूर्णिमा शब्द किसी भी कार्य की या भाव कि पूर्णता को प्रदर्शित करता है। जिस में कुछ भी अधूरा ना रहे, पूरी गुणों के और भावों के ज्ञान का समावेश हो।
गुरु पूर्णिमा का अर्थ : जिस में कुछ भी अधूरा ना रहे, पूरी गुणों के और भावों के ज्ञान का समावेश हो l
संस्कृत में एक श्लोक है :
“Guru Brahma Guru Vishnu Gurudevo Maheshwaraha
Gurhu sakshat Parambrahma tasmai Shri gurave namaha.”
“गुरूर ब्रह्मा गुरूर विष्णु: गुरूर देवो महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः”
इस से हमे ये पता चलता है कि गुरु को साक्षात् ब्रह्मा, विष्णु और महेशवर का साक्षात् रूप माना जाता है। अपनी समक्ष में इस परब्रह्म को पुनारादर के साथ नमन करता हूं।
भारत विभिन्नताओं से भरा देश है। जिसमें सभी लोगों के मनोभावनाओं को व्यक्त करने के लिए अलग-अलग त्योहार होते है। सबसे पहले मै आपको बतादू गुरु पूर्णिमा जो है वह महाभारत के रचयिता कृष्ण देव पयान व्यास का जन्म दिन भी है। व्यास संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान थे।जिन्होंने चारों वेदों की रचना की। इसलिए इनका नाम वेदव्यास भी है। इनकी ही सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यासपूर्णिमा की नाम से भी जाना जाता है।
भारतीय संस्कृति में गुरु का को सम्मान है। वह भगवान तुल्य माना जाता है। या हम ऐसा कहे की गुरु को ही भगवान माना गया है। गुरु ही हमारे जीवन से अज्ञान अंधकार को मिटाता है। गुरु हमे इस लायक बनाते है कि हम हमारी जीवन को सही तरह से,सही दिशा में और सही अर्थों के साथ जी सके।
गुरु पूर्णिमा पूरे देश में धूम दाम से मनाया जाता है। अशाड मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। इस दिन सभी अपने गुरु के प्रति आदर और सम्मान प्रकट करते है। इस साल 2020 में गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई को मनाया जाता है।
पिछले पाच सालो में गुरु पूर्णिमा कब – कब मने मनाई गई l
महर्षि वेदव्यास को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3,000 ई शा पूर्व हुआ था। उनकी सम्मान में ही
आषाढ़ शुक्ल पक्ष को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती हैं। गुरु पूर्णिमा का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन अपनी गुरु के प्रतिआदर भाव विशेष रूप से प्रकट कर सकते हैं। हालाकि गुरु के प्रति आदर भवहुने हमेशा रखना चाहिए।
यह किसी भी विशेष दिन का बाध्य नहीं है। परन्तु इस दिन चंद्रमा पूर्ण होते है। इस दिन को अपना एक विशेष महत्व है क्यों कि यह दिन गुरु के लिए समर्पित है। इस दिन हमे विशेष रूप से हमारे गुरु जनों के प्रति आदर सम्मान व्यक्त करके उनका आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए।
गुरु को ब्रह्मका रूप माना गया है। गुरु ही हमारे सच्चे व्यक्तित्व का निर्माण करता है और हम को अनमोल ज्ञान देकर जीवन को सही दिशा दिखते हैं।
पुराणों के अनसार भगवान शिव को सबसे पहला गुरू मना जाता है क्यों की परशुराम और शनि देव भगवान शिव के है शिष्य है। भगवान शिव के द्वारा है हमारी इस धरती पर सभ्यता और धर्म का प्रचार और प्रसार किया गया है। इसलिए शिव को आदि गुरु,आदि देव भी कहा जाता है।
कबीर दास के दोहे हमे गुरु का महत्व बताते हैं।
“गुरु गोवि्द दोऊ खड़े काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय”
यहाँ कबीर कहते हैं कि गुरु भगवान से भी बड़ा है। वह कहता है कि यदि गुरु और भगवान दोनों मेरे सामने हैं, तो मैं पहले गुरु का अभिवादन करूंगा, क्योंकि गुरु के उपदेश से ही मैं भगवान को देख सकता हूं।
इस से हमे पता चलता है कि गुरु को कितनी बड़ी दर्जा दी गई।
असली गुरु कैसे पाएं
गुरु दिव्य व्यक्तित्व है और हमारे पास भौतिक बुद्धि है। इसलिए जब हम अपनी भौतिक बुद्धि के साथ प्रयास और मूल्यांकन करते हैं, तो हम बाहरी चीजों को देखते हैं। क्या वह पतला है या वह मोटा है, क्या वह लंबा है या वह छोटा है ? क्या वह भगवा पहनता है या वह सफेद पहनता है ?
आप जानते हैं कि हम बाहरी चीजों को देखते हैं और इस तरह हम यह अनुमान लगाते हैं कि यह महात्मा कितना ऊँचा है? लेकिन यह गुरु को खोजने का माध्यम नहीं है। आप देख सकते हैं, आप गुरु के सामने जाकर खड़े हो सकते हैं। तुम्हें कुछ नहीं होगा, क्योंकि तुम जिस तरह से गुरु से लाभान्वित हो रहे हो। ऐसा तब है जब आपको अंदर से विश्वास है।
गुरु और शिष्य का संबंध भौतिक नहीं है। यह आंतरिक विश्वास, समर्पण और भक्ति पर निर्भर है। श्रीकृष्ण कहते हैं (भगवद गीता से कविता) अर्जुन मैं हर किसी के दिल में बैठा हूं और मुझसे ज्ञान, स्मरण और विस्मरण आता है। ताकि विश्वास भगवान आपको वही प्रदान करे जो आप योग्य हैं। ठीक है ? इसलिए गुरुओं को खोजने के बजाय, हम कोशिश करते हैं और अपना निर्माण करते हैं।
अगर आपकी खुद की इच्छा दूषित है, “ओह, मैं यह चाहता हूं, मैं चाहता हूं कि, मैं निशंक भक्ति नहीं चाहता, मुझे कुछ रहस्यवादी क्षमताएं चाहिए तो भगवान हमें कहीं और ले जाएंगे। हम विश्वास पैदा करेंगे कि वहाँ अच्छी तरह से था। दस साल के बाद हम पाते हैं कि हम ठगे गए हैं, हम गुरु को दोषी ठहराएंगे।
लेकिन वास्तव में धोखा देने की प्रवृत्ति हमारे अंदर थी। इसलिए अपने आप में आप ईश्वर और निस्वार्थ भक्ति के लिए ईमानदार प्यास विकसित करें। निस्वार्थ भक्ति का अर्थ है, यह नहीं कि मैं भक्ति का आनंद लेना चाहता हूं। मैं सेवा करना चाहता हूं, मैं देना चाहता हूं। जब ऐसा लगता है कि आप तैयार हैं जैसा कि कहा जाता है “जब छात्र तैयार हो जाता है तो शिक्षक अपने आप आ जाता है”। तुम पाओगे कि देवताओं की कृपा से तुम गुरु पाओगे।
हर इंसान को अपनी अंदर की गुरु को पहचानना चाहिए। हम सब की ज़िन्दगी में सबसे पहले गुरु होते है अपने माता पिता।
निष्कर्ष/उपसर्ग : गुरु वो होता है जिनसे हम कुछ अच्छा सीख सके। चाहे वो हम से उम्र में छोटा हो ,हमसे समान हो या फिर बड़ा हो। हम हमेशा हमारे पहले गुरु अपनी माता पिता का सम्मान करना चाहिए। हम सब को अलग अलग स्थिति में अलग अलग गुरु होते है। लेकिन सारे गुरुओं का मतलब एक ही होता है वो है अच्छाई को पहचानना और धर्म मार्ग पर चलना।
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गुरु के बारे में जितना भी कहा जाए वह कम ही हैं बहरहाल आपने गुरु के सम्बन्ध में बेहद सुंदर निबन्ध रचना प्रस्तुत की हैं.