World Population Day Essay/Nibandh in Hindi l Jansankhya population samasya karan essay in hindi
Essay on World Population in Hindi : दोस्तों आज हमने जन संख्या पर निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12 के विद्यार्थियों के लिए लिखा है. Get Some Essay on World Population day in Hindi for class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11 & 12 Students.
प्रस्तावना : विश्व जन संख्या दिवस एक अंतर राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान है। जिसे पूरे मानव समुदाय ने मिलकर बढ़ती हुई जन संख्या कि समस्या का हल किया जा सके। आज हम इस आर्टिकल के जरिए यह बात जानेंगे की विश्व जन संख्या दिवस को क्यों मनाया जाता है आदि।
संयुक्त राष्ट्र संघ की गवर्निंग काउंसिल की फैसले के अनुसार 1990 में विकास कार्यक्रम में विश्व स्तर पर सारे लोगों की सिफारिश के द्वारा यह तय किया गया कि हर साल 11 जुलाई को विश्व जन संख्या दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
ताकि आम जनता में जागरूकता को बढ़ाया जा सके। सामाजिक मुद्दों से निपटने के लिए वास्तविक समाधानों का पता लगाया जा सके।
विश्व जन संख्या दिवस को मनाने का उद्देश्य ,जन संख्या संबंधित समस्याओं पर स्पष्टता जागृत करना है। इस दिन संसार भर में विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कई मुख्य विषयों पर चर्चा करते है जैसे कि परिवारों में स्सदस्यों की बढ़ती संख्या और लैंगिक भेदभाव। ये महत्वपूर्ण है।
यह देखा गया है, 1987 में 11 जुलाई को दुनिया की आबादी 5 बिलियन तक पहुंच गई। भारत चीन के बाद दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में खड़ा है, लेकिन यह 2050 तक 278 बिलियन लोगों की होने की उम्मीद है और भारत 8 वर्षों में चीन से आगे निकल जाएगा।2010 के बाद से 27 देशों ने जनसंख्या में 1% की कमी दर्ज की है। लेकिन भारत की जनसंख्या बढ़ रही है।
जन गणना के अनुसार जन संख्या तो बाद रही है। लेकिन इतिहास की दृष्टि से यह कोई ठोस विचार नहीं क्यों,कैसे,किस तरह। अयिए इस पर थोड़ा विचार करते है। अगर थोड़ी पीछे जाकर इतिहास पर ध्यान लगाए तो ये सवाल उठता है कि
जन गणना होनी प्रारंभ कब से हुई ?
हम सही सही कैसे जानेंगे की इस ग्रह पर कितने लोग थे।इतिहास की दृष्टि से तो जन संख्या की वृद्धि का विचार सीमित सा लगता है।लेकिन शास्त्रों से हमे ये पता चलता है कि उस समय जन संख्या आज से कई ज्यादा था क्यों कि उस समय लोग प्रकृति से तालमेल से चलते थे।
जैसे प्रकृति भी उनके प्रचुर मात्रा में मदद करती थी। आज की समय कि बात करे तो पिछले दिनों से जन संख्या तो बढ़ रही है परन्तु इस रूप से बढ़ गई की वो पर्यावरण केलिए खतरा हो।
हम लोग शहरों में रहते हैं। कभी कभी लोगों की भीड़,भरी हुई ट्रेन, सड़के सब जगह बस भीड़ होती है।इस से हमे घुटन सी महसूस होती हैं।लेकिन हम जब दूसरी शहर जाते है इन्हीं बस,ट्रेन से तो रास्ते में हमे गांव दिखते है।
वो इतने भीड़ से भरा नहीं होते। बल्कि ज्यादातर जगह चारों ओर दूर दूर तक खुली और ताजा हवा होती है। जहां खेती कि जा सकती है।लेकिन वहा पर खेती नहीं होती,लोगों की रहने कि तो दूर की बात है।
हमारी सोशिओ इकोनॉमिकल व्यवस्था है जो खेती और किसानों को कई बार निरुत्सहित करता है।
शहरों की बड़ी बड़ी फैक्टरियों का असर ऐसा होता है कि खेती को छोड़ कर लोग शहरों में मजदूर बनने खींचे चले आते हैं। जिससे शहरों में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति शुरू होती हैं।
गांव खाली हो जाते है। प्रथ्वी में इतनी क्षमता है कि ये ना केवल वर्तमान,इस से भी अधिक जन संख्या को अपनी भीतर रख सकती हैं।क्यों की मुख्य यह नहीं की लोग कितने है बल्कि लोग प्रकृति के साथ कैसे व्यवहार कर रहे है।
जैसे कि कुछ किसान गेहूं,रागी, ज्वार जैसे अन्न की खेती करने के अलावा पैसों केलिए चाय, कॉफ़ी की पौधों को पैदा कर रहे है।
अगर ध्यान से देखा जाए तो जन संख्या की बढ़ने से कोई समस्या नहीं बल्कि प्राथमिक समस्या है असामान जीवन शैली की।ऐसा नहीं कि प्रकृति जीने की साधना नहीं दे रही लेकिन यह हम पर निर्भर रहता है कि कैसे उसकी उपयोग हम कर रहे हैं।
हमारे पुराणों में एक सिद्धांत होता है कि “इस ब्रह्माण्ड के भीतर की प्रत्येक वस्तु भगवान के द्वारा नियंत्रित है,उन्हीं की संपत्ति है। मनुष्य को अपने लिए जो जरूरी है उसका ही स्वीकार करे।
हमारी बढ़ती जन संख्या के साथ साथ लोगों की चाहत और मांग भी बढ़ती ही जा रही हैं। लेकिन कुछ जगह मांग अधिक होता हैं लोग कम होते है। कुछ जगह ऐसे होते है जहां लोग ज्यादा होते है और मांग काम होती हैं।ऐसे भी कुछ जगह होतें है जहां लोग और मांग अधिक होता है लेकिन वहा खाने की चीजों की मिलना कम होता है।
लिंडन बी जॉनसन ये अनुसार:
भूखी दुनिया को तब तक नहीं खिलाया जा सकता जब तक कि उसके संसाधनों की वृद्धि और उसकी आबादी का विकास संतुलन में न आ जाए। प्रत्येक, पुरुष और महिला और प्रत्येक राष्ट्र को इस महान समस्या के चरण में विवेक और नीतियों के निर्णय लेने चाहिए।
निष्कर्ष : पर्यावरण को नियंत्रित करने के बजाय हम अपने पर्यावरण के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए जनसंख्या को नियंत्रित करना चाहिए।लोगों को अपनी मांग से ज्यादा लेने कि आदत चूट जाए तो जन संख्या बढे भी कुछ नुकसान नहीं होगी।
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