गुरु पूर्णिमा को वेद्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है जिसे वेदव्यास के जन्मदिन पर मनाया जाता है। दोस्तों आज इस आर्टिकल से हम गुरु को सम्बोधित करती 6 अनमोल कविता आपको बताने जा रहे है l इन कविताओ को बोलकर आप अपने गुरुओ का सम्मान कर सकते है l
जैसे नाम से स्पष्ट होता है ,ये गुरु पूर्णिमा पर्व गुरु के लिए समर्पित है। गुरु पूर्णिमा शब्द किसी भी कार्य की या भाव कि पूर्णता को प्रदर्शित करता है। जिस में कुछ भी अधूरा ना रहे, पूरी गुणों के और भावों के ज्ञान का समावेश हो।
गुरु पूर्णिमा का अर्थ : जिस में कुछ भी अधूरा ना रहे, पूरी गुणों के और भावों के ज्ञान का समावेश हो l
भारतीय संस्कृति में गुरु का को सम्मान है। वह भगवान तुल्य माना जाता है। या हम ऐसा कहे की गुरु को ही भगवान माना गया है। गुरु ही हमारे जीवन से अज्ञान अंधकार को मिटाता है। गुरु हमे इस लायक बनाते है कि हम हमारी जीवन को सही तरह से,सही दिशा में और सही अर्थों के साथ जी सके।
तो आइए हम इस लेख में आपको बताते है गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु से जुड़ी हुई कुछ कविताएं
Best Short 6 Poem/Poetry on Guru Purnima in Hindi | inspirational Guru Purnima Par Kavita 2020
गुरु को सम्बोधित करती 6 अनमोल कविता
गुरु की महिमा क्या कहे, निर्मल गुरु से ही होए .
बिन गुरुवर, जीवन कटु फल सा होए ..
Poem (1)
गुरु के बिना ज्ञान नहीं
ज्ञान के बिना कोई महान नहीं
भटक जाता है जब इंसान
तब गुरु ही देता है ज्ञान
ईश्वर के बाद अगर कोई है
तो वो गुरू है
दुनिया से वाकिफ जो कराता है
वो गुरु है
हमें अच्छा इंसान जो बनाता है
वो गुरु है
बिना गुरु के जिंदगी आसान नहीं
हमारी कमियों को जो बताता है
वो गुरु है
हमें इंसानियत जो सिखाता है
वो गुरु है
हमें जो हीरे की तरह तराश दे
वो गुरु है
हमारे अंदर एक विश्वास जगा दे
वो गुरु है
जिसके पास नहीं है गुरु
समझ लेना कि वो धनवान नहीं
Poem (2)
हर प्रकार से नादान थे तुम, गीली मिट्टी के समान थे तुम।
आकार देकर तुम्हें घड़ा बना दिया,
अपने पैरों पर खड़ा कर दिया।
गुरु बिना ज्ञान कहां,
उसके ज्ञान का आदि न अंत यहां।
गुरु ने दी शिक्षा जहां,
उठी शिष्टाचार की मूरत वहां।
अपने संसार से तुम्हारा परिचय कराया,
उसने तुम्हें भले-बुरे का आभास कराया।
अथाह संसार में तुम्हें अस्तित्व दिलाया,
दोष निकालकर सुदृढ़ व्यक्तित्व बनाया।
अपनी शिक्षा के तेज से,
तुम्हें आभा मंडित कर दिया।
अपने ज्ञान के वेग से,
तुम्हारे उपवन को पुष्पित कर दिया।
जिसने बनाया तुम्हें ईश्वर,
गुरु का करो सदा आदर।
जिसमें स्वयं है परमेश्वर,
उस गुरु को मेरा प्रणाम सादर।
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Poem (3)
गुरु तेरे ज्ञान से बना हूँ मैं विद्वान,
तेरे आदर्शों पर चल कर बनना है महान,
मेरे अँधेरे जीवन में ज्ञान की ज्योत जलाई,
सिखलाया आपने मुझे नेकी और भलाई,
बताया आपने ही सफलता कैसे पाना है,
कितना ही ऊँचा चला जा, अभिमान कभी न करना है,
गुरु तेरे चरणों की धूल माथे पर सजाना है,
तेरे दिए उपदेशो को जग में फैलाना है,
कमजोरो-दुखियो को नेकी का करके दान,
गुरु तेरे ज्ञान से बना हूँ मैं विद्वान,
तेरे आदर्शों पर चलके बनना है महान।
हर मुश्किल घड़ी में धीरज रखना सिखाया था,
संसार के सारे जीवों से प्रेम भाव जगाया था,
गिरे को उठाना प्यासे को पानी,
ये सारी बाते सुने मैंने गुरु तेरे ही वानी,
प्रेम दया और करुणा का पाठ मुझे पढ़ाया था,
गुरु तुम ही ईश्वर हो तब समझ मै पाया था,
मन से लालच-लोभ मिटा कर,
पुण्य का नाम बढ़ाना आज हमने लिया है जान,
गुरु तेरे ज्ञान से बना हूँ मै विद्वान,
तेरे आदर्शो पर चलके बनना है महान।
धरती पर जब मैंने जनम लिया,
माँ बाप ने मुझे नाम दिया,
पर तेरे ज्ञान से ही समझ मै पाया था,
क्या बुरा क्या भला सारे भेद बतलाया था,
तेरे ज्ञान के प्रकाश से ही राह मैंने पाया था,
जिसने मुझे जीवन की मंजिल पार कराया था,
तेरे हर एक-एक वाणी को सलाम,
ऐ मेरे महान गुरु तुझको सत-सत प्रणाम,
ऐ मेरे महान गुरु तुझको सत सत प्रणाम।
गुरु तेरे ज्ञान से बना हूँ मै विद्वान,
तेरे आदर्शो पर चलकर बनना है महान।
Poem (4)
जानवर इंसान में जो भेद बताये
वही सच्चा गुरु कहलाये
जीवन-पथ पर जो चलाना सिखाये
वही सच्चा गुरु कहलाये
जो धेर्यता का पाठ पढ़ाये
वही सच्चा गुरु कहलाये
संकट में जो हँसना सिखाये
वही सच्चा गुरु कहलाये
पग-पग पर परछाई सा साथ निभाये
वही सच्चा गुरु कहलाये
जिसे देख आदर से सिर झुकजाये
वही सच्चा गुरु कहलाये…
Poem (5)
शिक्षक हैं शिक्षा का सागर,
शिक्षक बांटे ज्ञान बराबर ,
शिक्षक मंदिर जैसी पूजा,
माता-पिता का नाम है दूजा,
प्यासे को जैसे मिलता पानी,
शिक्षक है वही जिंदगानी,
शिक्षक न देखे जात-पात,
शिक्षक न करता पक्ष-पात,
निर्धन हो या हो धनवान,
शिक्षक को सब एक समान !
Poem (6)
मां तुम प्रथम बनी गुरु मेरी
तुम बिन जीवन ही क्या होता
सूखा मरुथल, रात घनेरी
प्रथम निवाला हाथ तुम्हारे
पहली निंदिया छाँव तुम्हारे
पहला पग भी उंगली थामे
चला भूमि पर उसी सहारे
बिन मां के है सब जग सूना
जैसे गुरु बिन राह अंधेरी
जिह्वा पर भी प्रथम मंत्र का
उच्चारण तो मां ही होता
शिशु हो, युवा, वृद्ध हो चाहे
दुख में मां की सिसकी रोता
द्वार बंद हो जाएँ सारे
माँ के द्वार न होती देरी
मां की पूजा विधि विधान क्या
फूल न चंदन, मंत्र सरल सा
प्रेम पुष्प अँजुरी में भर कर
गुरु के चरणों अर्पित कर जा
आशीषों की वर्षा ऐसी
बजे गगन में मंगल भेरी
मां तुम प्रथम बनी गुरु मेरी
Guru Purnima Marathi Kavita/Poem/Poetry
Poem 1
सत्याच्या शोधात मी दोन्ही मार्ग धुंडाळले
काही पूजनीय मानले जाणारे तर काही विचित्र
पण कृपावंत गुरू आले आणि
त्यांनी माझ्या ज्ञानाच्या प्रवाहाला दिशा दिली
तृतीय नेत्राच्या पवित्र स्थानी
त्यांनी त्यांची काठी टेकवली
आणि मला वेड लावून गेले
या वेडेपणावर काहीच इलाज नाही
पण निखालस हीच मुक्ती आहे…
जेव्हा मी पाहिलं की
भयानक रोगसुद्धा
विनासायास पसरतात
तेव्हा मनुष्यप्राण्याला वेड लावायची
मोकळीक घेऊन मी कामाला लागलो
हरलो! हात टेकलेले मी
जीवन आणि मृत्यूच्या खेळापुढे
दोन्ही खेळ खेळलो मी
पण ढिम्म हललो नाही..
आणि अचानक एक माणूस
माझ्यापाशी येतो,
तो काठी टेकत चालणारा
मी नवयुवकासारखा सुदृढ
सगळं पाहून चुकलेलो मी
जन्म – मृत्यू आणि
जे जे म्हणून जीवन बहाल करतं, ते सगळं काही ..
तरी सुन्न बसून होतो..
तेव्हा हा काठीवाला माझ्यापाशी आला
अन् त्याची विद्युत्पाती काठी
माझ्या कपाळावर टेकवून गेला.
( by SadhGuru )
हर इंसान को अपनी अंदर की गुरु को पहचानना चाहिए। हम सब की ज़िन्दगी में सबसे पहले गुरु होते है अपने माता पिता।
गुरु वो होता है जिनसे हम कुछ अच्छा सीख सके। चाहे वो हम से उम्र में छोटा हो ,हमसे समान हो या फिर बड़ा हो। हम हमेशा हमारे पहले गुरु अपनी माता पिता का सम्मान करना चाहिए। हम सब को अलग अलग स्थिति में अलग अलग गुरु होते है। लेकिन सारे गुरुओं का मतलब एक ही होता है वो है अच्छाई को पहचानना और धर्म मार्ग पर चलना।
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