कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए भारत में 2 महीने से ज्यादा समय तक लॉकडाउन को लगाया गया था जिसकी वजह से देश भर में चलने वाली सारी आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ गई थी और कई लोग बेरोजगार हो गए थे
जिसकी वजह से भारत में आर्थिक मंदी का खतरा मंडराने लगा है। हाल ही में दुनिया की जानी मानी इन्वेस्टर सर्विस मूडीज ने भारत की क्रेडिट रैंकिंग ‘baa2’ से ‘baa3’ कर दिया है जिसका मतलब है
भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी लंबे समय तक धीमी वृद्धि का सामना करना पड़ेगा। जिससे साफ तौर पर कहा जा सकता है कि भारत आने वाले समय में मंदी का सामना करने जा रहा है।
इस मुश्किल घड़ी में लोगों में हिम्मत बनाए रखने के लिए देश के कई अर्थशास्त्रियों ने सरकार को यूनिवर्सल बेसिक इनकम को शुरू करने को कहा है। कोविड-19 महामारी से जूझ रहे दुनिया के कई देश पहले ही यूनिवर्सल बेसिक इनकम को शुरू कर चुके हैं। तो चलिए जानते हैं यूनिवर्सल बेसिक इनकम के बारे में।
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम ?
लंदन यूनिवर्सिटी में कार्यरत प्रोफ़ेसर गाय स्टैंडिंग को यूनिवर्सल बेसिक इनकम का जनक कहा जाता है। इस स्कीम के अनुसार उन्होंने कहा था कि देश में गरीबी हटाने के लिए देश की जनता को निश्चित अंतराल पर एक तयशुदा रकम देनी चाहिए।
इस योजना के अनुसार अगर कोई व्यक्ति बेरोजगार नहीं है तो भी उसे इस योजना का लाभ मिलेगा। अगर इस योजना को केवल गरीबों के लिए लांच किया गया तो इसे पार्शियल बेसिक इनकम कहा जाता है।
भारत में कब से हो रही है इस योजना को लागू करने की चर्चा ?
2017 में भारत की एक न्यूज़ एजेंसी को दिए गए इंटरव्यू में गाय स्टैंडिंग ने कहा था कि कांग्रेस शासनकाल के दौरान कांग्रेस ने उनसे इस योजना के बारे में चर्चा करी थी लेकिन उस समय सरकार इसे लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी।
उसके बाद 2016-2017 के आर्थिक सर्वे के दौरान मोदी सरकार ने इस योजना का जिक्र किया था। उन्होंने उस समय आर्थिक सर्वेक्षण को जारी करते हुए इस योजना के लिए 40 पेज का एक खाका तैयार किया था।
इस रिपोर्ट में इस योजना को देश में गरीबी मिटाने के लिए एक बेहतरीन प्रयास कहा गया था। सरकार की कई कल्याणकारी योजनाएं सफल नहीं हो पा रही थी जिसके बाद इस योजना को काफी अहम बताया जा रहा था।
क्या कहा गया था आर्थिक सर्वेक्षण 2016-2017 मे ?
आर्थिक सर्वेक्षण 2016-2017 के अनुसार भारत में केंद्र सरकार द्वारा 950 योजनाएं चलाई जा रही हैं जो कि भारत की कुल जीडीपी का 5% की हिस्सेदारी रखती है।
इनमें से अधिकतर योजनाएं काफी कम बजट की है और जिनमें से टॉप 11 योजनाओं के बजट मे हिस्सेदारी ही 50% का है। इसको देखते हुए यूनिवर्सल बेसिक इनकम को इस सर्वे में लाभार्थियों के लिए एक विकल्प के तौर पर पेश किया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि यह योजना लोगों के जीवन के स्तर को बेहतर बनाने में सहायक होगी।
पायलट प्रोजेक्ट का हुआ था सफल प्रशिक्षण
इस योजना को पायलट प्रोजेक्ट के तहत मध्यप्रदेश की एक पंचायत में लागू किया गया था जिससे उस इलाके में काफी सकारात्मक नतीजे सामने आए थे।
इस योजना का इंदौर के 8 गांवों में 6000 लोगों पर 2010 से 2016 तक प्रशिक्षण किया गया था। इस योजना में पुरुषों और महिलाओं को प्रतिमाह ₹500 और बच्चों को ₹150 दिए गए थे। इन 5 सालों में अधिकतर लोगों ने इस योजना की वजह से अपनी आय में वृद्धि कर ली थी।
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इस योजना को इस्तेमाल करने का फायदे ?
अगर यह योजना भारत में लागू होती है तो इसे गरीब तबके के लिए लागू किया जाएगा।
इस योजना की मदद से भारत की गरीब जनता को प्रतिमाह एक निश्चित राशि मुहैया कराई जाएगी जिसकी मदद से उसकी आय में वृद्धि होगी। इस योजना की मदद से देश की करीब 20 करोड़ जनता को राहत मिलेगी और भारत से गरीबी मिटाने में यह योजना सहायक होगी।
इस योजना को लागू करने के बाद सरकारी खजाने में बोझ पड़ने की स्थिति में सरकार नियमित रूप से दूसरी योजनाओं में दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म कर सकती है।
गाय स्टैंडिंग के अनुसार अगर यह योजना लागू करी जाती है तो इसका कुल खर्च जीडीपी का 3% से 4% तक होगा और वर्तमान में देखा जाए तो सरकार अन्य योजनाओं में दी जाने वाली सब्सिडी पर जीडीपी का 4% से 5% खर्च करती है।
इस योजना को लागू करने में क्या है चुनौती ?
आर्थिक सर्वेक्षण 2016-2017 मे यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इस योजना को देश की पूरी जनता के लिए लागू नहीं किया जाएगा इसीलिए इस योजना को सही रूप से लागू करने के लिए वास्तविक लाभार्थी का चयन करना काफी मुश्किल है।
अगर इस योजना का लाभ लेने के लिए इसका वास्तविक हकदार वंचित रह जाता है तो यह अपने नाम (यूनिवर्सल)की पूर्ण रूप से प्राप्ति नहीं कर पाएगी।
इंडिया रेटिंग के डी के पंत के अनुसार यह योजना सुनने में तो काफी अच्छी लगती है लेकिन इस योजना के तहत इसके असली लाभार्थी की पहचान करना काफी मुश्किल कार्य है।
अगर इस योजना को सही रूप से अमलीजामा पहनाना है तो सबसे पहले इसके असली लाभार्थी की पहचान करना जरूरी है तभी यूनिवर्सल बेसिक इनकम को आगे बढ़ाया जा सकता है।
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