वसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू का त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा करने वालों को विद्या और बुद्धि का वरदान मिलता है।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
जिस प्रकार मनुष्य जीवन में यौवन आता है उसी प्रकार बसंत इस प्रकृति का यौवन है। ‘बसंत ऋतु’ को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। जाती हुई सर्दियां, बड़े होते दिन, गुनगुनी धूप धीरे-धीरे तेज होती हुई, काव्य प्रेमियों को हमेशा आकर्षित करती रही है।
बसंत ऋतु सदैव ही कवियों की प्रिय ऋतु रही है। इस समय तक सूखे पत्ते झड़ जाते हैं और नए पत्ते आने लगते हैं। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल ही फूल दिखाई देते हैं। खेतों में नई फसलें पक जाती हैं। सरसों, राई और गेहूँ के खेत मन को लुभाने लगते हैं, जिन्हें देखकर किसान गदगद होता है।
‘बसंत पंचमी’ बसंत के आगमन का ही त्यौहार है। आइए बसंत को कवियों की नजर से देखते हैं, उन्हें पढ़ते हैं।
आज बसंत पंचमी का दिन
जागो बेटी देखो उठकर
कैसा उजला हुआ सवेरा
कोयल कुह-कुह बेल रही है
स्वागत करती है यह तेरा
आज बसंत पंचमी का दिन
पूजेंगे सब सरस्वती को
विद्या कि देवी है यह तो
देती है वरदान सभी को
उठो अभी मंजन कर लो तुम
फिर तुमको नेहलाऊँगी
बासनती कपड़े पहनकर
चन्दन तिलक लगाऊँगी
पूजा करके हम तीनों ही
पीले चावल खायेंगे
दादा बांटेंगे प्रसाद तो
सब ही मिलकर पायेंगे।
उसके बाद सैर करने को
हम बगिया में जायेंगे
सरसों फूली बौर आम में
देख देख सुख पायेंगे
नीलकंठ पक्षी भी हमको
दर्शन देने आयेगा।
आज बसन्त पंचमी का दिन
तभी सफल हो पायेगा।
बहार है लेकर बसंत आयी
ख़त्म हुयी सब बात पुरानी
होगी शुरू अब नयी कहानी
बहार है लेकर बसंत आई
चढ़ी ऋतुओं को नयी जवानी,
गौरैया है चहक रही
कलियाँ देखो खिलने लगी हैं,
मीठी-मीठी धूप जो निकले
बदन को प्यारी लगने लगी है,
तारे चमकें अब रातों को
कोहरे ने ले ली है विदाई
पीली-पीली सरसों से भी
खुशबु भीनी-भीनी आई
रंग बिरंगे फूल खिले हैं
कितने प्यारे बागों में
आनंद बहुत ही मिलता है
इस मौसम के रागों में
आम नहीं ये ऋतु है कोई
ये तो है ऋतुओं की रानी
एक वर्ष की सब ऋतुओं में
होती है ये बहुत सुहानी
ख़त्म हुयी सब बात पुरानी
होगी शुरू अब नयी कहानी
बहार है लेकर बसंत आई
चढ़ी ऋतुओं को नयी जवानी,
आरंभ बसंत हुआ
शीत ऋतु का देखो ये
कैसा सुनहरा अंत हुआ
हरियाली का मौसम है आया
अब तो आरंभ बसंत हुआ,
आसमान में खेल चल रहा
देखो कितने रंगों का
कितना मनोरम दृश्य बना है
उड़ती हुयी पतंगों का,
महके पीली सरसों खेतों में
आमों पर बौर हैं आये
दूर कहीं बागों में कोयल
कूह-कूह कर गाये,
चमक रहा सूरज है नभ में
मधुर पवन भी बहती है
हर अंत नयी शुरुआत है
हमसे ऋतु बसंत ये कहती है,
नयी-नयी आशाओं ने है
आकर हमारे मन को छुआ
उड़ गए सारे संशय मन के
उड़ा है जैसे धुंध का धुंआ,
शीत ऋतु का देखो ये
कैसा सुनहरा अंत हुआ
हरियाली का मौसम आया
अब तो आरम्भ बसंत हुआ।
आया वसंत आया वसंत (सोहनलाल द्विवेदी)
आया वसंत आया वसंत
छाई जग में शोभा अनंत।
सरसों खेतों में उठी फूल
बौरें आमों में उठीं झूल
बेलों में फूले नये फूल
पल में पतझड़ का हुआ अंत
आया वसंत आया वसंत।
लेकर सुगंध बह रहा पवन
हरियाली छाई है बन बन,
सुंदर लगता है घर आँगन
है आज मधुर सब दिग दिगंत
आया वसंत आया वसंत।
सीधी है भाषा वसंत की (त्रिलोचन)
सीधी है भाषा
वसंत की
कभी आंख ने समझी
कभी कान ने पाई
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आई
और है कहानी
दिगंत की
नीले आकाश में
नई ज्योति छा गई
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गई
एक लहर फैली
अनंत की
ऋतुओं में न्यारा वसंत (महादेवी वर्मा)
स्वप्न से किसने जगाया?
मैं सुरभि हूं.
छोड़ कोमल फूल का घर
ढूंढती हूं कुंज निर्झर.
पूछती हूं नभ धरा से-
क्या नहीं ऋतुराज आया?
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत
मै अग-जग का प्यारा वसंत.
मेरी पगध्वनि सुन जग जागा
कण-कण ने छवि मधुरस माँगा.
नव जीवन का संगीत बहा
पुलकों से भर आया दिगंत.
मेरी स्वप्नों की निधि अनंत
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत.
वसंत ऋतु की सुबह
सूरज की पहली किरण देखो धरती पे आई,
उठो चलो अंगड़ाई लो सुबह हो गयी भाई,
देखो देखो बगिया में कलि खिलने को आई.
चारों तरफ सुन्दरता की लाली सी छाई,
बागों में है फूल खिले, पेड़ो पर हरियाली छाई,
कितना सुन्दर मौसम है, लो फिर से है वसंत आई,
ठंडी-ठंडी हवा चल रही, कोमलता सी लायी,
गलियों में चौराहों में, फूलों की खुशबू छाई,
हम भी मिल कर जरा, वसंत का गीत गायें
आओ इन बहारों संग घुल-मिल सा जाएँ,
इस मौसम में आकर देखो सब दूरी है मिटाई
झूमो नाचो और गाओ, खाओ खिलाओ जरा मिठाई,
चहकते हुए पक्षियों ने स्वागत में तान लगायी,
वाह! क्या नजारा है, दिल में ख़ुशी सी छाई,
वसंत के प्यारे इस दिन में जीवन में खुशिया आयीं
हर गम दुःख भुलाकर हंस लो थोड़ा भाई,
हर तरफ खुशनुमा आनंद सा छाया है,
रातों की काली स्याही ये सूरज छांट आया है,
सूरज के आ जाने से, उम्मदी की किरण है पायी.
उठो चलो अंगड़ाई लो, सुबह हो गयी भाई,
कुदरत का ये खेल भी ना जाने क्या कह जाता है
हर पल हर समय, अहसास नया सा दे जाता है,
आसमा की झोली से, अरमान नया सा लाया है
आज ही हमें पता चला, जिंदगी ने खुलकर गाया है,
बहारों की इस उमंग से, सब में मस्ती सी आई,
उठो चलो अंगड़ाई लो सुबह हो गयी भाई।
कुछ और कविताये :
➜ गणतंत्र दिवस |
➜ Fathers Day |
➜ दिवाली |
➜ स्वतंत्रता दिवस |
➜ रक्षाबंधन |
➜ गुरु पूर्णिमा |
➜ डॉक्टर्स डे |
➜ वर्षा ऋतु |
अगर आपको ये कविता ‘ वसंत पर कविता ‘ पसंद आयी, तो इसे शेयर करना ना भूलें । अगर आप भी एक कवि है या कविता लिखना आपको अच्छा लगता है लेकिन आपको कोई मंच नही मिल रहा तो आप हमे अपनी लिखी हुई कविता [email protected] पर मेल कर सकते है l हम आपके कविता को आपके नाम और फोटो के साथ प्रकाशित करेंगे l
Note : कविता भजने के साथ आप अपना (नाम , पता , जिला , राज्य , उम्र ) जरुर भेजे धन्यवाद