हेलो दोस्तों, जैसा कि आप सभी जानते है कि हम आपके लिए भारतीय इतिहास से जुड़े पहलुओं को उजागर करते है जिन्हें आप लोग नही जानते होंगे। आज भी हम आपके लिए कुछ ऐसा ही पहलु लेकर आये है।
तो इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िये। अगर आप मध्य प्रदेश में है और आपको इतिहास पढ़ने व जानने के शौकीन है तो आप Gwalior Fort History के बारे में जरूर जानना चाहेंगे।
जैसा की हम सब जानते है की इंडिया अपने इतिहास व अपने किलों के लिये पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। इन्हीं में से आज हम आपके लिये ऐसे किले को लेकर आये है जो अपनी इतिहास के लिया जाना जाता है। जिसका नाम है “ग्वालियर किला “।
भारत के केंद्र में एक राज्य है जिसका नाम मध्य प्रदेश है। यह राज्य बहुत सूंदर है। यहां पर बहुत से दार्शनिक स्थल भी है। इन्ही दार्शनिक स्थलों में से एक ग्वालियर का किला है।
यह किला मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में स्थित है। यह किला भारत के सबसे बड़े व पुराने किलों में से एक है। यह किला भारत के इतिहास में बहुत बड़ा मूल्य रखता है।
दोस्तों आज हम आपके लिए इसी किले के बारे में बहुत से अनजाने रहस्य लेकर आये है। जिसमें आप Gwalior Fort History व घूमने की विशेष जगहों के बारे में जानकारी ले सकते है तथा इस किले के बारे बहुत कुछ जान सकते है।
ग्वालियर का किला
ग्वालियर किले का निर्माण 727वीं शताब्दी में सूर्यसेन ने करवाया था। सूर्यसेन ग्वालियर किले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का एक सरदार था। इतिहास में इसका कोई सबूत नहीं है कि इस विशाल किले को बनने में कितना समय लगा। इस किले के बारे में एक कथा है।
कथा के अनुसार ग्वालियर किले का नाम एक साधु के नाम पर रखा गया था जिसका नाम ग्वालिपा था। एक बार साधु ने एक तालाब का पवित्र जल पीला कर कुष्ठ रोग से राजा सूरसेन को बचाया था तथा उन्हें “पाल” नाम से नवाज़ा था। तथा यह आशीर्वाद दिया कि जब तक वह अपने नाम में इस उपाधि को लगाएगा तब तक यह किला उसके नियंत्रण में रहेगा। यह बात बिलकुल सच साबित हुई।
इस किले के इतिहास में कहा जाता है की 83 उत्तराधिकारियों तक पाल वंश का अधिकार इस किले पर रहा व 84 वे वंशज ने इसे हटा दिया जिस कारण वह इसे हार गये।
इसी कारण साधु ग्वालिपा के नाम पर इस किले का नाम ग्वालियर का किला रखा गया। बाद में इस पुरे शहर का नाम भी ग्वालियर पढ़ गया। इसके बाद इस किले पर कईं राजपूत शासकों का शासन रहा। पाल वंश के ख़त्म होने के बाद इस पर प्रतिहार वंश ने शासन किया। Gwalior Fort History
ग्वालियर का किला का इतिहास में लगभग 10वीं शताब्दी में ग्वालियर का किला चंदेल वंश के दीवान कछापघ्त के नियंत्रण में था। 11वीं शताब्दी में जब मुग़ल पुरे भारत को अपने अधीन कर रहे थे तब इस किले पर मुग़लो की नज़र पड़ी और उन्होंने इस पर आक्रमण कर दिया। “तबकती अकबरी” नामक रचना में एक विषेश घटना का उल्लेख है जो ग्वालियर का किला का इतिहास से जुड़ा हुआ है और यह Gwalior Fort History को और भी रोचक बनाता है।
ग्वालियर किला का इतिहास
एक बार महमूद गजनी ने इस किले पर केवल 4 दिनों के लिए शासन किया और केवल 35 हाथियों के बदले इसे वापस लौटा दिया। यह बात उस समय की है जब मुगलों का शासन पुरे देश में फैल रहा था।
उस समय घुरिद वजीर क़ुतुब अल दिन ऐबक नामक एक मुग़ल शासक ने इस किले को जीत लिया और वह कुछ समय बाद दिल्ली का शासक भी बना। लेकिन कुछ समय बाद वह ग्वालियर का किला को हार गया। 1232 ईस्वी में इल्तुमिश नामक एक शासक ने ग्वालियर किले पर वापस अधिकार कर लिया।
1398 वीं ईस्वी में इस किले पर तोमर वंश का शासन शुरू हुआ। तोमर राजा मान सिंह ने ग्वालियर किले पर शासन किया। Gwalior Fort की एक खास बात यह भी है कि इस किले के निर्माण में तोमर राजा मान सिंह का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है।
1505वीं ईस्वी में दिल्ली के शासक सिकंदर लोदी ने इस किले पर हमला किया लेकिन यहां के राजपूतो ने बड़ी वीरता के साथ लड़ते हुए उन्हें हरा दिया।
1516वीं इस्वी के समय सिकंदर लोदी के पुत्र इब्राहिम लोदी ने ग्वालियर के किला पर पुनः आक्रमण किया। इस युद्ध में यहां के शासक राजा मान सिंह विजयगति को प्राप्त हुए फिर भी तोमर वंश ने एक वर्ष तक उनसे युद्ध किया और आखिरकार वे हार गये।
10 साल तक किले पर दिल्ली का शासन रहा। फिर मुग़ल शासक बाबर ने इसे जीत लिया। लेकिन 1558 ईस्वी में शेरशाह सूरी ने इस किले को मुगलो से छीन लिया। Gwalior Fort History
ग्वालियर किला की कहानी
भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण जगह रखने वाले मुगल सम्राट अकबर का नाम भी ग्वालियर किले से जुड़ा हुआ है। 1558 में अकबर ने इस किले पर विजय प्राप्त की। उन्होंने इस किले को अपना कारागार बना दिया जिसमें अकबर राजनैतिक कैदियों को रखा करते थे। ग्वालियर का किला का इतिहास में 2 महत्वपूर्ण घटनायें हुई।
जिसमें पहले थी अकबर के चचेरे भाई कामरान। व दूसरी घटना थी औरंगज़ेब के भाई मुराद ओर भातिजून सोलेमान एवं सफ़र शिको को यहां मौत की सजा दी गयी।
मुग़ल वंश के शासक औरंगज़ेब की मौत क़े बाद इस पर गोहड़ के राणाओं का शासन हुआ। मराठा राजा महाड़ जी शिंदे (सिंधिया) ने उन्हें हराकर किले पर मराठो का शासन स्थापित किया। Gwalior Fort History
यह वो समय था जब ईस्ट इंडिया कंपनी पुरे भारत में अपना शासन ला रही थी तो उन्होंने मराठो को हराकर इस किले को हथिया लिया। कैप्टन पोफाम और ब्रूस ने अंग्रेजी सेना की कमान संभाली थी।
अर्ध-रात्रि में छापामार युद्ध नीति से उन्होंने ग्वालियर किले पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। गवर्नर वारेन हास्टिंग्स ने गोहड राणा को 1780 ईस्वी में परास्त कर ग्वालियर किले पर अधिकार किया।
अब इसी बीच गोहड राणा ने अंग्रजो के साथ धोखा किया। जिससे वे उससे दूर हो गये। इसका फायदा मराठो को मिला। पुरे 4 साल बाद मराठो ने ग्वालियर किले को फिर जीत लिया।
सन 1808 से 1844 के मध्य अंग्रजो व मराठो के बीच ग्वालियर किले के लिए कई बार युद्ध हुए। ग्वालियर का किला का इतिहास कभी अंग्रजो के पास तो कभी मराठो के पास रहा।
सन 1844 में मराठो के सिंधिया वंश को अपने दीवान बना दिया व उन्हें राज करने के लिया दे दिया। सन 1857 की क्रांति में जहां पूरा भारत आजादी के लिया लड़ रहा था।
उस समय यहां 7000 सैनिको ने अंग्रजो के विरुद्ध हथियार उठा लिया। लेकिन वस्सल राजा जियाजी सिंधिया ने अंग्रजो का साथ दिया। जिसकी मदद से सन 1858 में ग्वालियर किले को जीत कर अंग्रजो ने अपने अधिकार में वापस ले लिया व सिंधिया को कुछ रियासतें दे दी। Gwalior Fort History
सन 1886 में अंग्रजो ने पुरे भारत पर अपने अधिकार कर लिया था। अब उनके लिए ग्वालियर किले का कोई मूल्य नहीं था। इसलिए उन्होंने सिंधिया वंश को इस किला का अधिकार दे दिया। सिंधिया वंश ने सन 1947 तक ग्वालियर किले पर राज किया। इस वंश ने ग्वालियर का किला का इतिहास में कई महत्वपूर्ण निर्माण भी करवाये।
जिसमें महल, मंदिर, पानी की टंकियां व अन्य महत्वपूर्ण संरचनायें बनायीं। उन्होंने इस किले के रख-रखाव पर बहुत ध्यान दिया। तो ये था Gwalior Fort History। जो भारत के इतिहास से काफी जुड़ा हुआ है। Gwalior Fort ने काफी उतार चढ़ाव देखे है। कई बड़े युद्ध देखे है व कई बड़ी घटनायें देखी।
ग्वालियर का किला की संरचना ।
ग्वालियर का किला लाल बलुवा पत्थर से बना है। यह खूबसूरत किला गोपांचल नामक एक पहाड़ी पर स्थित है। इसकी लम्बाई 342 फ़ीट और चौड़ाई 910 मीटर है। इस किले की ऊँचाई 350 फ़ीट तक है। ग्वालियर किले के पास से एक छोटी नदी बहती है जिसका नाम स्वर्णरेखा हैै। जो इस किले को ओर ज्यादा भी खूबसूरत बनाती है।
दोस्तों अगर आप घूमने के बहुत शौकीन है तो आपको Gwalior Fort History जरूर देखना चाहिए। इस किले में प्रवेश करने के लिए दो मार्ग है। पहला गेट है ग्वालियर गेट – इस गेट से आप पैदल चल कर इस किले में प्रवेश कर सकते है।
इसका दूसरा गेट है ऊरवाई गेट – इस गेट की मदद से आप किले में अपनी गाड़ी से प्रवेश कर सकते है। इस रास्ते में एक संकरी सी एक सड़क है जिसके दोनों तरफ बड़ी बड़ी चट्टाने है। इन चट्टानों पर जैन तीर्थकंरों की बनाई गयी मुर्तियां है जो इसे बहुत आकर्षित बनाती है।
इतिहास से जुड़े दस्तावेजों में ग्वालियर का किला का इतिहास को 10वी शताब्दी में उपस्थित बताया है। लेकिन इस किले के आंगन में मिले नक्काशियों और ढांचों ने इस किले को 6वीं शताब्दी का बताया है।
हुना वंश के राजा मिहिराकुला के द्वारा सूर्य मंदिर व गुर्जरा-प्रतिहरासिन द्वारा 9 वी शताब्दी में तेली का मंदिर का निर्माण किया गया। जो इस किले को 10वीं शताब्दी से पहले के होने को प्रमाणित करते है।
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ग्वालियर किले में घूमने योग्य स्थान ।
इस किले में आपको बहुत से सूंदर व मनमोहक महल, मंदिर व बहुत से कलाकृतिया देखने को मिलती है। इसमें पन्द्रहवीं शताब्दी में निर्मित गुजरी महल बहुत ही प्रसिद्ध है।
यह महल राजा राजा मान सिंह ने अपनी रानी मृगनयनी के लिया बनवाया था। वह उनसे बहुत प्रेम करते थे। इस महल को बाहर से पुरातत्व विभाग द्वारा संभाला जा रहा है और इसे अंदर से एक संग्रालह बना दिया है।
जहाँ ग्वालियर किला का इतिहास से जुड़े कई प्राचीन चीज़े मिलेगी। यहाँ बहुत सी प्राचीन मूर्तियों को संभाल कर रखा गया है। जो मुर्तियां ग्वालियर शहर के आस पास से मिले है।
इस किले में 2 द्वार है पहला उत्तर-पूर्व में है जिसका नाम हाथी पुल। व दूसरा द्वार दक्षिण-पश्चिम में है जिसको बदालगढ़ द्वार नाम से जाना जाता है। यहां अन्य बहुत सी देखने लायक चीज़े है जिसमें जैन मन्दिर बहुत प्रमुख है। Gwalior Fort History
मंदिर
ग्वालियर किले में कुल 11 जैन मंदिर है। यहां सिद्धाचल जैन मंदिर गुफा को 7वी शताब्दी से 15वी शताब्दी में बनवाया गया था इस किले में तीर्थंकरों ने 21 जैन मंदिरो को चट्टानों में बनाया था। इनमें से सबसे बड़ा ऋषभनाथ या अदीनाथ की मूर्ति है। इनमें सबसे पहला 58 फीट 4 इंच का है। Gwalior Fort History
ग्वालियर का किला का इतिहास में और भी बहुत से मंदिर है। जिसमें गोपांचल पहाड़ी व उर्वाही पर बने जैन मंदिर है। गोपांचल पर कम से कम 1500 मुर्तियां बनी हुई है। ये मुर्तियां 6 इंच से 57 फ़ीट तक विशाल मुर्तियां है व उर्वाही पर नक्काशीदार लगभग 840 मूर्तियां बनी हुई है।
zइन मूर्तियों का निर्माण 1341-1479 में राजा डुंगर सिंह और तोमर वंश के केर्ति सिंह के शासन काल में किया गया था। इस किले में “तेली का मंदिर” बहुत प्रसिद्ध है।
इस मंदिर के निकट गरुड़ स्मारक भी है जो हिन्दू और मुस्लिम वास्तुकला से बनाया गया है। यहां भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ का प्रतीक है। इस किले में एक सहस्त्रबाहू मंदिर भी है जो भगवान विष्णु का है। यहां एक गुरुद्वारा डेटा बांदी छोर भी है। यहां 6वें सिख गुरु हरगोबिंद साहिब को गिरफ्तार किया गया था।
किले के इतिहास में बहुत से सूंदर व विशाल महल है। जिसमें से मन मंदिर पैलेस, हठी पोल, कर्ण महल,विक्रम महल, छतरी ऑफ़ भीम सिंह राणा है।
ग्वालियर किले में एक संग्राहलय भी है। गुर्जरी महल को अब संग्राहलय में बदल दिया गया है। इस किले में बहुत सी अन्य कलाकृतियां मौजूद है। जिसमें से सिंधिया स्कूल प्रमुख है। जो राजकुमारों को शिक्षा देने के लिए बनाया गया था।
ग्वालियर के खजाने के कहानी ।
ग्वालियर किले के तहखानों में आज भी सिंधिया वंश का खजाना मौजूद है। पहले के ज़माने में बैंक या अन्य कोई जगह ऐसी नहीं होती थी जहाँ कोई अपने धन को रख सके।
इसलिए पहले के राजा अपन सारा खजाना तहखानों में छुपा कर रखा करते थे। कहा जाता है की जब 1857 की क्रांति के समय जब पुरे देश में अंग्रेजो व क्रांति करियो के मध्य युद्ध छिड़ा हुआ था तो यहां के राजा ने अपने सारा खजाना अंग्रेजो और क्रांतिकारियों से छुपा कर रखने के लिए इसे किले के तहखानों में छुपा दिया था।
शून्य:
Gwalior Fort में एक खास बात और है| इस किले में शून्य से जुड़े सबसे पुराने दस्तावेज इसी किले के ऊपर जाते हुए एक मंदिर में मिले थे। जो कि 1500 साल पुरानी है। जिसमें शून्य से जुड़े काफी मददगार पहलू है जिससे वैज्ञानिको को काफी मदद मिली।
गुजरी महल:
गुजरी महल को राजा मान सिंह ने अपनी रानी के लिए बनवाया था। उनकी रानी ने राजा से अपने लिए एक महल बनवाने की मांग की। जहाँ पानी के उचित स्रोत हो। तब राजा ने राय नदी के निकट एक महल बनवाया। जहाँ पानी के उचित स्रोत थे।
तो दोस्तों ये था ग्वालियर का किला का इतिहास व इससे जुडी कुछ घटनाएं। तो आप सब Gwalior Fort History को जरूर देखना चाहते होंगे। तो अब हम आपको कुछ ऐसी सूचना देने जा रहे है। जिससे आपको अधिक परेशानी का सामना न करना पड़े व आसानी से आप इस किले में घूम सके।
किले का प्रवेश शुल्क:
- भारतीय निवासी – 75
- भारतीय विद्यार्थी – 40
- विदेशी पर्यटक – 250
किले में प्रवेश समय:
- 8:00 AM – 6:00 PM
ग्वालियर किले में घूमने हेतु समय अवधि:
- 1-2 घण्टे
Gwalior ka Killa हफ्ते के सातो दिन खुला रहता है। इस किले का नजदीकी एयरपोर्ट, Gwalior Airport है। जो यहां से 10 किलोमीटर दूर है। यहां से रेलवे स्टेशन 4 किलोमीटर व बस स्टैंड 3 किलोमीटर दूर है।
ग्वालियर किले का पता:
- Gwalior, Madhya Pradesh 474008
ये कुछ ऐसी जानकारियां थी जिससे आपको किले तक पहुंचने व वहां घूमने में बहुत आसानी रहेगी। Gwalior Fort History हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है।
इस किले को आज भी संरक्षित किया जा रहा है जिससे की भविष्य में भी इसकी गरिमा बानी रहे। इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपको Gwalior Fort History को देखने की इच्छा और बढ़ गयी होगी। अगर आप ग्वालियर चाहते हैं तो आपको शीत ऋतु में वहाँ जाना चाहिए क्योंकि ग्वालियर का किला मध्यप्रदेश में स्थित है और मध्य प्रदेश एक गर्म प्रदेश है।
अगर आपके मन में Gwalior Fort History से सम्बंधित किसी भी प्रकार का प्रश्न है तो आप हमसें कमेंट के माध्यम से पूछ सकते है। हम आपके प्रश्न का जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे। आगे भी हम आपके लिए ऐसे ही उपयोगी आर्टिकल लाते रहेंगे।
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