Poem on Rain in Hindi

बारिश का सीजन मानसून (वर्षा ऋतु ) पर कविताये

आज हम आपके सामने बारिश यानी मानसून पर लिखी गई कुछ बेहतरीन कविताएं शेयर करने जा रहे हैं यह सभी कविताएं बहुत ही अच्छे लेखकों द्वारा लिखी जा चुकी है जिनका का संग्रह आज हम आपके सामने पेश करेंगे l

वर्षा ऋतु पर लिखी गई यह सारी कविताएं विद्यार्थियों के लिए वर्षा ऋतु पर कविता लिखने में सहायता प्रदान करेगी l

मई की छुट्टियां खत्म होने के बाद हम सभी को अगर किसी का इंतजार होता है, तो वह है बारिश। भारत में बारिश का सीजन करीबन 3 से 4 महीनों तक चलता है।

भारतीय उप महाद्वीप के लोग बारिश को ‘मानसून‘ कहते है। विभिन्न देशों और विभिन्न प्रदेशों में बारिश के मौसम की एक विशिष्ट अवधि तय नहीं है। उष्ण कटिबंध वर्षा वनों में पूरे वर्ष भर बारिश होती है तो, सहारा जैसे रेगिस्तान में बहुत ही कम वर्षा होती है।

Get Some Rain Poem in Hindi for 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 Class Students.

20+ वर्षा ऋतु पर कविताये – Short Poem on Rain in Hindi For Kids (Students)
1. Poem on Rain in Hindi – भीगा दिन !

भीगा दिन
पश्चिमी तटों में उतर चुका है,
बादल-ढकी रात आती है
धूल-भरी दीपक की लौ पर
मंद पग धर।

गीली राहें धीरे-धीरे सूनी होतीं
जिन पर बोझल पहियों के लंबे निशान है
माथे पर की सोच-भरी रेखाओं जैसे।

पानी-रँगी दिवालों पर
सूने राही की छाया पड़ती
पैरों के धीमे स्वर मर जाते हैं
अनजानी उदास दूरी में।

सील-भरी फुहार-डूबी चलती पुरवाई
बिछुड़न की रातों को ठंडी-ठंडी करती
खोये-खोये लुटे हुए खाली कमरे में
गूँज रहीं पिछले रंगीन मिलन की यादें
नींद-भरे आलिंगन में चूड़ी की खिसलन
मीठे अधरों की वे धीमी-धीमी बातें।

ओले-सी ठंडी बरसात अकेली जाती
दूर-दूर तक
भीगी रात घनी होती हैं
पथ की म्लान लालटेनों पर
पानी की बूँदें
लंबी लकीर बन चू चलती हैं
जिन के बोझल उजियाले के आस-पास
सिमट-सिमट कर
सूनापन है गहरा पड़ता,

-दूर देश का आँसू-धुला उदास वह मुखड़ा-
याद-भरा मन खो जाता है
चलने की दूरी तक आती हुई
थकी आहट में मिल कर।

गिरिजा कुमार माथुर


2. Poem on Rain in Hindi – सावन आयो रे !

सावन आयो रे, आयो रे,
सावन आयो रे।
उमड़-घुमड़ कर कारी बदरिया
जल बरसायो रे।।

मेंहदी वाला रंग रचाकर
सखियां झूला झूलें
पांव की पायल कहती है
कि उड़ते बादल छू लें
पीउ-पीउ कर के पपिहा ने
शोर मचायो रे,
सावन आयो रे।

सर-सर-सर-सर उड़े चुनरिया
हवा चले सन-सन-सन
रिमझिम-रिमझिम बरसे पानी
भीगे गोरिया का तन
सब सखियन ने मिलकर
राग मल्हार सुनायो रे,
सावन आयो रे।।

बहका-बहका मौसम है
ऋत पिया मिलन की आई
सब सखियाँ मिल तीज मनावें
हरियाली है छाई
जिसके पिया परदेस बसे
चिठिया भिजवायो रे,
सावन आयो रे।

सुनील जोगी


3. Poem on Rain in Hindi – अनोखा अहसास !

ये बारिश की बूँदें
इतना शोर क्यों मचा रही हैं?
या किसी के दिल का
हाल सुना रहीं हैं ?

अहसास जो कह ना पाए कोई,
इतना ही पावन और शीतल है,
जो मन में तूफ़ान मचा रहा है,
इन्हीं बारिश की बूँदों की तरह,
वो भी बरसाना चाहता है
पर बरस ना पता है,
गर बरसेगा तो
ऐसे ही ज़ोर से बरसेगा,
शोर मचाएगा,  और अंत में
खुशी भी पाएगा!!

आस्था


4. Poem on Rain in Hindi – आषाढ़ की रात !

मध्य रात्रि ही लगेगी,
आज पूरी रात भर में!

आह!
ये, आषाढ़ की बरसाती रात है!
ऊपर गगन से जल,
नीचे धरा पर टूटता-
जोड़ देता, पृथ्वी और आकाश को,
जो अचानक!
तड़ित, विस्मित देह, कंपित,
ओझलाझल है, नज़र से!

बस, चमकीला नीर,
गिरता जो व्यथित
अंधड़ हवा से उछलता, या हल्की,
टप. . .टप. . .!
पर है धुप्प अँधेरा जहाँ में,
हर तरफ़!
काली अमावसी रात,
मानो करेला, नीम चढ़ा!
मैं, असहाय, सहमी,
है जी, उचाट मेरा!
देख रही पानी को,
काली भयानक रात को,
तोड़ कर, काट,
फेंक देती जो विश्व को,
मुझसे, बिल्कुल अलग-थलग,
अलहदा. . .और,
मैं, रौंद देती हूँ,
मेरी उँगलियों के बीच में,
वेनी के फूल!

मेरी व्याकुल मन चाहे
आएँ स्वजन, इस आषाढ़ी रात में
मन पुकारता है, उन बहारों को,
लौट गईं जो उलटे पाँव!
आगत आया ही नहीं, इस बार!
पानी नहीं, मुझे आग चाहिए!

लावण्या शाह

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5. Poem on Rain in Hindi – सावन में !

सावन में तन मन जलाए
हाय रे बेदर्दी साजन!
तेरे बिन जिया न जाए
हाय रे बेदर्दी साजन!

धरती प्यासी आँगन प्यासा
रीत गई हर अभिलाषा
दर्द बढ़ा कर क्या सुख पाए
हाय रे बेदर्दी साजन!

बदरा बरसे कण-कण हरसे
हरी-हरी हरियाली सरसे
तू क्यों मेरी जलन बढ़ाए
हाय रे बेदर्दी साजन!

सुन ले मेरी कातर मनुहारें
कभी तो आ भूले-भटकारे
अब तो हाय अंग लगा ले
हाय रे बेदर्दी साजन!

प्रीत की रीत वही पुरानी
तू क्या जाने ओ अभिमानी
राधा को क्या कपट दिखाए
हाय रे बेदर्दी साजन!

प्रिया सैनी


6. Poem on Rain in Hindi – बरखा रानी !

कैसे करूँ मैं स्वागत तेरा बता ओ बरखा रानी
घर की छत गलती है जब-जब बरसे पानी

बारिश में लगता है मौसम बड़ा सुहाना
बूँद-बूँद ताल बजाए पंछी गाएँ गाना
मैं सोचूँ, कैसे चूल्हे की आग जलानी

ठंडी-ठंडी बौछारें हैं पवन चले घनघोर
बादल गरजे उमड़-घुमड़ नाचे वन में मोर
मन मेरा सोचे, कैसे गिरती दीवार बचानी

इंद्रधनुष की छटा बिखेरी बरसा पानी जम के
पाँवों में नूपुरों को बाँधे बरखा नाची छम से
मैं खोजूँ वो सूखा कोना जहाँ खाट बिछानी

प्रकृति कर रही स्वागत तेरा कर अपना शृंगार
पपीहे ने किया अभिनंदन गा कर मेघ मल्हार
मैं भी करता स्वागत तेरा भर अँखियों में पानी
आ जा ओ बरखा रानी!
आ जा ओ बरखा रानी!

हेमंत रिछारिया


7. Poem on Rain in Hindi – अहा क्या तो बारिश है !

मुंबई की बारिश हरी भरी
पल में तोला पल में माशा
मायावी है ये बारिश
मज़ा तो यह है कि
सड़क के इक तरफ़
बारिश है और दूसरी तरफ़
न बारिश न कीचड़
अचानक
झोंका आया हवा का
झमाझम बरस गए बादल
रस्ते भर गए खढ्ढे दिखते नहीं
देखो! वह आदमी फिसल गया
वह पेड़ गिर गया
ऑटो टकरा गया मारुति से
अचानक सब थम गया
ये बारिश
नाम ही नहीं ले रही रुकने का
पटरियों पर भर गया है पानी
गाडियाँ रुक गई हैं
बावजूद इसके रुकता नहीं
जीवन यहाँ
बारिश को भी आता है
मुंबई में मज़ा
पूरे चार महीने खेलती है
लोगों से आँख-मिचौली

मधुलता अरोरा


8. Poem on Rain in Hindi – बादल का पानी !

बरस गया बादल का पानी!

बिजली चमकी दूर गगन में,
कंपन होते प्राण भवन में,
तरल-तरल कर गई हृदय को,
निष्ठुर मौसम की मनमानी।
बरस गया बादल का पानी!

धुली आस कोमल अंतर की,
बही संपदा जीवन भर की,
फिर भी लेती रहीं लहरियाँ
हमसे निधियों की कुरबानी।
बरस गया बादल का पानी!

धार-धार में तेज़ लहर है,
लहरों में भी तेज़ भँवर है,
सपनों का हो गया विसर्जन,
घेरे आशंका अनजानी।
बरस गया बादल का पानी!

डा अजय पाठक


9. Poem on Rain in Hindi – चैत्र में वर्षा की एक रात !

रात बारह बारह बजे
आँधी के साथ उड़ने लगी
घर की खपरैल
पानी के साथ गिरते ओलों से
घबरा गई माँ
और बढ़ गई पिता की चिंता

माँ टपकती छत के नीचे से
सामान हटाती हुई
कोसने लगी इंद्र को

पिता खटिया पर बिछी
कथरी उठा जा बैठे पौर में
और उखड़ती हुई साँस से
चिल्ला रहे थे
“गेहूँ भीतर धरो
कपड़ा लत्ता उठा लो
चखिया पे फट्टा डार दो”

असमय बरसात से
बैठ गया माँ बाप का कलेजा
और मैंने डबडबाई आँखों से
पूरे घर को हिलते हुए देखा

हरगोविन्द पुरी


10. Poem on Rain in Hindi – एक कहानी है बादल !

मैं सैलानी- तुम सैलानी
गति दोनों की ही मनमानी।
पलती है भीतर दोनों के –
एक कुँआरी पीर अजानी।

दोनों में हैं घुटन भरी –
दोनों में पानी है
बादल! मेरी और तुम्हारी
एक कहानी है।

अनगिन रूप-धरे जीने को
लिए-लिए छलनी सीने को
कहाँ-कहाँ भटके हैं हम-तुम
लेकर अपना यौवन गुमसुम।

फिर गाँव, बस्ती में बन में
कुछ न कहीं पाया जीवन में
फिर भी हँसते रहे सदा-
कैसी नादानी है।

हमने जितने स्वप्न सँवारे
मौसम पर बंधक हैं सारे
कितने ही दिन हम ऋतुओं के
आगे रोए – हाथ पसारे।

कहकर सबसे दुआ बंदगी
धुआँ-धुआँ हो गई ज़िंदगी
हम पर बची नहीं
कोई भी नेह निशानी है।

कन्हैयालाल बाजपेयी


11. Poem on Rain in Hindi – छम-छम बूँदे !

छम-छम बूँदे बरखा की
लेकर आई है संगीत नया
हरियाली और प्रेम का
बना हो जैसे गीत नया
मनभावन-सा लगे हैं सावन
हर चितवन हो गई है पावन
मेघों ने मानों झूमकर
धरती की प्यास बुझाई है
खेलकर खेतों में
फैलकर रेतों में
मतवाली बरखा आई है
संग अपने
त्यौहारों की भी
खुशहाली वो लाई है

स्मिता प्रसाद दारशेतकर


12. Poem on Rain in Hindi – तूफ़ान के समय !

क्षितिज से उठ कर
विषैले बादलों में सनसनाता आता है तूफ़ान
झुलसती कोटरों में चिड़ियाँ टहनियाँ पेड़ों की!

झुका लूँगा शीश तब
उड़ाए झुलसाएगा जब तूफ़ान
यह रुखे सूखे बालों को।
शीश पर सह लूँगा
वेग सब प्रकृति के विकृत तूफ़ान का।

कड़कती उल्का आकाश में
विचलित करती है मानव में अंतर्हित ज्योति को।

बढूँगा आगे और
शांत होगा, जब विष वातावरण
अथवा यों शीश झुका
खड़ा हुआ अचल, एकांत स्थल पर,
देखूँगा भस्मसात होती है कैसे वह अंतर्ज्योति,
पाता है जय कैसे,
मानव पर कैसे यह विकृत प्रकृति का तूफ़ान।

रामविलास शर्मा


13. Poem on Rain in Hindi – डरा पक्षी !

काँपते रात के तूफ़ान में
बिजली की चौंध में
नष्ट नीड़ देख कर
वह लौटा घर निराश।

विश्व सिकुड़ गया था तब
कोई दूसरा नहीं
जो अपने जैसा रहा
नहीं ढूँढ़ता अब कोई।

भूमि बहुत अलग-सी थी
रेत थी मकान थे
ध्रुव ऋतु समान-सी
न धूप थी न चाँदनी।

खिड़की से जब देखता
बंधु उछल रहे
पंख भरते उड़ान
यह दृश्य सोचकर।

नल की फुहार बनी
उसकी बरसात अब
सुदूर भूले देश में
रिमझिम पानी गिर रहा।

सुभाष काक


14. Poem on Rain in Hindi – मेह क्या बरसा !

मेह क्या बरसा
घरों को लौट आए
नेह वाले दिन

हाट से लौटे कमेरे
मुश्किलों से मन बचा कर
लौट आए छंद में कवि
शब्द की भेड़ें चरा कर

मेह क्या बरसा
भले लगने लगे हैं
स्याह काले दिन

कोप घर से लौट
धरती ने हरी मेहँदी रचाई
वीतरागी पंछियों ने
गीतरागी धुन बनाई

मेह क्या बरसा
लगे मुरली बजाने
गोप ग्वाले दिन

कुरकुरे रिश्ते बने
कड़वे कसैले पान थूके
उमंगें छत पर चढ़ीं
मैदान में निकले बिजूके

मेह क्या बरसा
सभी ने हाथ में लेकर
उछाले दिन

महेश अनघ


15. Poem on Rain in Hindi – पहला पानी !

बिजली चमकी
सुरपति के इस लघु इंगित पर
लो यहाँ जामुनी बादल नभ में ठहर गए
आशीष दे रहे हाथों से।
धीरे-धीरे पूरब से आती हुई हवा
चारों दिशाओं में गई फैल
ढँक गए शीत से चौड़े-चौड़े खेत, हार
धरती परती घर गलियारे सब जुड़ गए
धीरे-धीरे संध्या की-सी बदली छाई
दुपहर जल से गरुई होकर कुछ झुक आई
आलोक गल गया अंबर में
लो सहसा झर-झरकर पहला झोंका आया
हम बढ़ें घरों की ओर तनिक
जल्दी-जल्दी दौड़े-दौड़े।
दो गोरे-गोरे बलगर बैलों की गोंई
हो गई ठुमककर खड़ी पकरिया के नीचे
उड़ गई चहककर नीबी की सबसे ऊँची
फुनगी पर बैठी गौरैया
फैली चुनरिया अटरिया चढ़ लाई उतार
जल्दी-जल्दी घाघर समेट घर की युवती।
खुलकर बरसा पहला पानी
इन धुले-धुले बिरवों के नीचे से होकर
बह चली गाँव की गैल-गैल
कच्ची मिट्टी की सुघर गेहुँई दीवारें

रघुवीर सहाय


16. Poem on Rain in Hindi – पहली बारिश !

रस्सी पर लटके कपड़ों को सुखा रही थी धूप
चाची पिछले आँगन में जा फटक रही थी सूप

गइया पीपल की छैयाँ में चबा रही थी घास
झबरू कुत्ता मूँदे आँखें लेटा उसके पास

राज मिस्त्री जी हौदी पर पोत रहे थे गारा
उसके बाद उन्हें करना था छज्जा ठीक हमारा

अम्मा दीदी को संग लेकर गईं थीं राशन लेने
आते में खुतरू मोची से जूते भी थे लेने।

तभी अचानक आसमान पर काले बादल आए
भीगी हवा के झोंके अपने पीछे-पीछे लाए

सब से पहले शुरू हुई कुछ टिप-टिप बूँदा-बाँदी
फिर आई घनघोर गरजती बारिश के संग आँधी

मंगलू धोबी बाहर लपका चाची भागी अंदर
गाय उठकर खड़ी हो गई झबरू दौड़ा भीतर

राज मिस्त्री ने गारे पर ढँक दी फ़ौरन टाट
और हौदी पर औंधी कर दी टूटी फूटी खाट

हो गए चौड़म चोड़ा सारे धूप में सूखे कपड़े
इधर उधर उड़ते फिरते थे मंगलू कैसे पकड़े

चाची ने खिड़की दरवाज़े बंद कर दिए सारे
पलंग के नीचे जा लेटीं बिजली के डर के मारे

झबरू ऊँचे सुर में भौंका गाय लगी रंभाने
हौदी बेचारी कीचड़ में हो गई दाने-दाने

अम्मा दीदी आईं दौड़ती सर पर रखे झोले
जल्दी-जल्दी राशन के फिर सभी लिफ़ाफ़े खोले

सबने बारिश को कोसा आँखें भी खूब दिखाईं
पर हम नाचे बारिश में और मौजें ढेर मनाईं

मैदानों में भागे दौड़े मारी बहुत छलांगें
तब ही वापस घर आए जब थक गईं दोनों टाँगें

सफ़दर हाशमी


17. Poem on Rain in Hindi – रिमझिम यह बरसात !

मनमयूर लो नचा गई
रिमझिम यह बरसात
लिखी किसी के भाग्य मे
आँसू की सौगात
भीगा सावन प्यार में
जल में भीगा बदन
सजनी साजन से करे
कैसे प्रणय-निवेदन?

छम-छम पायल बज उठे
चूड़ी बजती खनखन
बोल नहीं पाते अधर
झूमता आया पवन

कानों में कुछ कह गया प्यारी-प्यारी बात
मनमयूर लो नचा गई
रिमझिम यह बरसात

पिया बिना बरसात में
काटी रतियाँ जाग
वेणी फूलों से लदी
डसती जैसे नाग

अंगारों-सा क्यों लगे
हरा-भरा यह बाग
तन जल में मन जल उठे
पानी मे यह आग

काँटे दिल तक ना चुभे
दी गुलाब ने मात
लिखी किसी के भाग्य मे
आँसू की सौगा़त

डूब गया घरबार सब
बहा गई लंगोट
किया बसेरा फटी हुई
चादर की ले ओट

हेलीकोप्टर आ गए
नेता माँगे वोट
आंसू मगरमच्छ के
दिल पर करते चोट

फंड हजम कर रो रही
जनता को दी लात
लिखी किसी के भाग्य में
आँसू की सौगात।

हरिहर झा


18. Poem on Rain in Hindi – पढ़ाई और बरसात !

जब भी मेरे मन में पढ़ाई के विचार आते थे
जाने क्यों आकाश में काले बादल छा जाते थे

मेरे थोड़ा-सा पढ़ते ही गगन मगन हो जाता था
पंख फैला नाचते मयूर मैं थककर सो जाता था

पाठयपुस्तक की पंक्तियाँ लोरियाँ मुझे सुनाती थीं
छनन छनन छन छन बारिश की बूँदें आती थीं

टर्र टर्र टर्राते मेंढक ताल तलैया भर जाते थे
रात-रात भर जाग-जाग हम चिठ्ठे खूब बनाते थे

बरखा रानी के आते ही पुष्प सभी खिल जाते थे
कैसे भी नंबर आ जाएँ हरदम जुगत लगाते थे

पूज्यनीय गुरुदेव हमारे जब परिणाम सुनाते थे
आँसुओं की धार से पलकों के बाँध टूट जाते थे

पास होने की आस में हम पुस्तक पुन: उठाते थे
फिर गगन मगन हो जाता फिर नाचने लगते मयूर
फिर से बादल छा जाते थे

नीरज त्रिपाठी


19. Poem on Rain in Hindi – बचपन का सावन !

अम्मा के आँगन में
टिप-टिप गिरती बूँदें
गाती रही मेघ मल्हार
मैं बैठी गिनती रही

गिरते जामुन बार-बार
बादलों से लेकर आई
भर कर झोली में
फूटती किरणें और बौछारें
आमों की बगिया को
फिर सींचा बौछारों से
किरणों का बिछौना बुन
सजाया भीगे पत्तों से
मोती बनने की आस में

पी थी मैंने सारी
सावन की बूँदें
सीप समझ मुझमें शायद
स्वाति नक्षत्र की बूँद
समा जाए

सावन के इस दुलार में
बचपन के अनभिज्ञ संसार में
भीगा मेरा तन-मन
अनुभूति की बौछार में
आज भी मेरे आँगन में
ये सीले पल दबे पाँव
पाँव तलक आ जाते हैं
पानी में पडते ही
छींटें उड़ा जाते हैं

कब छूटा है माँ का अँगना
कब छूटी है बौछारें
हर मोड़ पर मिल जाती है
सावन की गीली बूँदों की तरह
मेरी आँखों में
एक तस्वीर की तरह
और हवा में बहकी
तितली की तरह

रजनी भार्गव


20. Poem on Rain in Hindi – भीगा दिन !

भीगा दिन
पश्चिमी तटों में उतर चुका है,
बादल-ढकी रात आती है
धूल-भरी दीपक की लौ पर
मंद पग धर।

गीली राहें धीरे-धीरे सूनी होतीं
जिन पर बोझल पहियों के लंबे निशान है
माथे पर की सोच-भरी रेखाओं जैसे।

पानी-रँगी दिवालों पर
सूने राही की छाया पड़ती
पैरों के धीमे स्वर मर जाते हैं
अनजानी उदास दूरी में।

सील-भरी फुहार-डूबी चलती पुरवाई
बिछुड़न की रातों को ठंडी-ठंडी करती
खोये-खोये लुटे हुए खाली कमरे में
गूँज रहीं पिछले रंगीन मिलन की यादें
नींद-भरे आलिंगन में चूड़ी की खिसलन
मीठे अधरों की वे धीमी-धीमी बातें।

ओले-सी ठंडी बरसात अकेली जाती
दूर-दूर तक
भीगी रात घनी होती हैं
पथ की म्लान लालटेनों पर
पानी की बूँदें
लंबी लकीर बन चू चलती हैं
जिन के बोझल उजियाले के आस-पास
सिमट-सिमट कर
सूनापन है गहरा पड़ता,

-दूर देश का आँसू-धुला उदास वह मुखड़ा-
याद-भरा मन खो जाता है
चलने की दूरी तक आती हुई
थकी आहट में मिल कर।

गिरिजा कुमार माथुर


21. Poem on Rain in Hindi – अनोखा अहसास !

ये बारिश की बूँदें
इतना शोर क्यों मचा रही हैं?
या किसी के दिल का
हाल सुना रहीं हैं?
अहसास जो कह ना पाए कोई,
इतना ही पावन और शीतल है,
जो मन में तूफ़ान मचा रहा है,
इन्हीं बारिश की बूँदों की तरह,
वो भी बरसाना चाहता है
पर बरस ना पता है,
गर बरसेगा तो
ऐसे ही ज़ोर से बरसेगा,
शोर मचाएगा, और अंत में
खुशी भी पाएगा!!

आस्था


22. Poem on Rain in Hindi – वर्षा !

नभ के नीले आँगन में
घन घोर घटा घिर आईं।
इस मर्त्य-लोक को देने
जीवन-संदेशा लाईं।

है परहित निरत सदा ये
मेघों की माल सजीली।
इस नीरस, शुष्क जगत को
करती हैं सरस, रसीली।

इससे निर्जीव जगत जब
सुंदर, नव जीवन पाता।
हरियाली मिस अपनी वह
हर्षोल्लास दिखलाता।

इस वसुधा के अँचल पर
अनुपम प्रभाव छा जाते।
इन हरी घास के तिनकों
में भी मोती उग आते।

इनका मृदु रोर श्रवण कर
कोकिल मधु-कण बरसाती।
तरु की डाली-डाली पर
कैसी शोभा सरसाती।

केकी निज नृत्य दिखाया,
करता फिरता रंगरेली।
पक्षी भी चहक-चहक कर
करते रहते अठखेली।

सर्वत्र अंधेरा छाया
कुछ देता है न दिखाई।
बस यहाँ-वहाँ जुगनू-की
देती कुछ चमक दिखाई।

पर ये जुगनू भी कैसे
लगते सुंदर, चमकीले।
जगमग करते रहते हैं
जग का ये मार्ग रंगीले।

सरिता-उर उमड पड़ा है
फिर से नव-जीवन पाकर।
निज हर्ष प्रदर्शित करता
उपकूलों से टकरा कर।

मृदु मंद समीकरण सर-सर
लेकर फुहार बहता है।
धीरे-धीरे जगती का
अँचल शीतल करता है।

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी


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